फ्री बेसिक: उद्योगपति महेश मूर्ति ने facebook को दी कड़ी टक्कर

नई दिल्ली. साल 2015 में फ्री बेसिक इंटरनेट सर्विस के नाम पर देश के इंटरनेट परिस्थिति तंत्र पर एक बड़ी बहस छिड़ी। कभी इंटरनेट.ओआरजी तो कभी फ्री बेसिक के नाम पर फेसबुक अपनी योजना को भारत में लॉन्च करने का प्रयास करता रहा। ट्राइ द्वारा रिलायंस कॉम्युनिकेशन की फ्री इंटरनेट सर्विस को बैन करने के बाद पिछले कुछ सप्ताह से फेसबुक अपने ग्राहकों से ट्राइ को जबरन फ्री बेसिक के समर्थन में मैसेज भिजवा रहा है।

इसी कड़ी में भारतीय उद्योगपति महेश मूर्ति का एक आर्टिकल THE WIRE में छपा, जिसमें उन्होंने फेसबुक की फ्री बेसिक योजना की जमकर आलोचना की। इस आर्टिकल के प्रसारित होने के बाद फेसबुक की तरफ से भी जवाब आए, जिनका महेश मूर्ति ने कड़ा सामना किया। आइए इस पूरी बहस पर एक नजर डालें।

महेश मूर्ति (ऑरिजिन आर्टिकल) : इस योजना का समर्थन करने वाले शायद ये नहीं जानते कि ये पूरी प्रक्रिया फेसबुक के अपने सर्वर पर निर्धारित होगी, जिससे फेसबुक बड़ी चालाकी से ग्राहकों के डाटा को कंट्रोल कर पाएगा। भारत में इंटरनेट डाटा पहले ही काफी सस्ता है और रही गरीबों की बात तो उनके लिए भारत सरकार तटस्थ और फ्री इंटरनेट स्वयं उपलब्ध करा सकती है। इसके अलावा और भी कई तरह के समाधान हो सकते हैं, फिर फेसबुक को गरीबों की इतनी चिंता क्यों हो रही है?

फेसबुक : ये बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि भारत में कई बड़ी साइट फ्री बेसिक का समर्थन नहीं कर रही हैं। वहीं दूसरी ओर फ्री बेसिक को इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, एक्युवैदर, बीबीसी, बिंग और कई बड़ी कंपनियों का साथ मिला है। हमें लगता है कि सभी बड़ी और छोटी साइटों का अगर हमें समर्थन मिलता तो ज्यादा बेहतर होता। इसके अलावा रही प्राइवेसी की बात तो बता दें कि 90 दिनों से पहले हमें किसी भी ग्राहक की निजी जानकारी नहीं मिलेगी। इन 90 दिनों में हम केवल अपने ग्राहक के अनुभवों को बदलने और सुधार करने पर ध्यान देंगे।

महेश मूर्ति का जवाब : आपको बता दें कि भारत की टॉप 40 साइटों में फ्री बेसिक को अब तक केवल विकीपीडिया और खुद फेसबुक रिलीज कर रहा है।

दूसरा आपको बताएं कि 'फ्री बेसिक' में आप गूगल, यूट्यूब, अमेजन, फ्लिपकार्ट, याहू, लिंक.इन, ट्विटर, स्नैपडील, एचडीएफसी, आइसीआइसीआइ, पेटीएम, इबेय, आइआरसीटीसी, एनडीटीवी, रेडिफमेल, क्योरा, क्विकर, रेड बस, बीएसइ, आदि का सुविधाओं का लाभ बिल्कुल नहीं उठा पाएंगे। 'फ्री बेसिक' पूरी तरह से इंटरनेट.ओआरजी की तरह ही काम करेगा।

इससे ग्राहकों की प्राइवेसी को भी खतरा है। मान लीजिए 'फ्री बेसिक' में आप बिंग पर कुछ सर्च करते हैं तो क्या आप जानते हैं आपकी हर एक गतिविधि पर फेसबुक की पैनी नजर लगातार बनी रहेगी। दूसरा, यह पूरा खेल एक तरह से फेसबुक के सर्वर पर खेला जाएगा, जहां शक्ति केवल फेसबुक के हाथ में होगी।

फेसबुक के विज्ञापन में दावे : ये कोई चार दीवारों से घिरा गार्डन नहीं है। करीब 40 प्रतिशत ग्राहक पूरे महीने इंटरनेट का लुत्फ उठाने के बाद 30 दिनों के भीतर पेयमेंट करते हैं। वहीं फ्री सर्विस का उपयोग इससे 8 गुना ज्यादा लोग कर रहे हैं।

महेश मूर्ति (ऑरिजिन आर्टिकल) : इसका मतलब करीब 60  प्रतिशत फेसबुक की जेल में फंसे हुए हैं। स्पष्ट है, या तो इंटरनेट सभी के लिए उपलब्ध हो या इसमें तटस्थता होनी चाहिए।

फेसबुक : ये एक आसान गणित के सुझाया जा सकता है कि 40 प्रतिशत लोगों ने फ्री बेसिक से ऑनलाइन जर्नी की शुरूआत की जो कि मात्र 30 दिन में पूरी तरह इंटरनेट से जुड़ गए। जबकि इससे करीब 8 गुना ज्याद लोगों ने इंटरनेट के लिए फ्री बेसिक का इस्तेमाल कर रहे हैं। हम अभी भी करीब 55 प्रतिशत लोगों को इस प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं

महेश मूर्ति का जवाब : ये एक साफ झूठ है, फेसबुक जिन झूठे और गलत दावों को आधार बनाकर गणित बना रहा है वास्तव में वो सफेद झूठ है। अक्टबूर तक रिलायंस और फेसबुक के प्रयासों के बाद केवल 10 लाख लोगों को ऑनलाइन लाया गया था, जिनमें से करीब 80 प्रतिशत लोगों ने अपने खर्च पर डाटा का इस्तेमाल किया और फ्री इंटरनेट सर्विस को खारिज किया।
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