तुर्की में दियानेट (धार्मिक मामलों का कार्यालय) के जानकार लोगों को बहुत सम्मान प्राप्त है। कहना गलत न होगा कि ऐसे मामलों में कहा गया उनका एक-एक शब्द 'वेदवाक्य' की तरह होता है जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता है और न ही इसे कोई गलत ठहराने का साहस कर सकता है। तुर्की में इस्लाम की व्याख्या करने के मामले में भी इसे सर्वोच्च संस्था माना जाता है।
पिछले सप्ताह ही दियानेट ने इस्लामी कानूनों की व्याख्या करते हुए एक धार्मिक आदेश जारी किया। इस आदेश से भयंकर बहस छिड़ गई है कि क्या यह नैतिकता की दृष्टि से उचित होगा? एक इस्लाम के अनुयायी ने दियानेट से पूछा था कि अगर एक पिता अपनी बेटी को कामुक भावनाओं के तहत चूमता है तो क्या इससे पिता के विवाह पर कोई असर पड़ता है?’ दियानेट का कहना था कि इससे पिता, एक पति के विवाह पर कोई असर नहीं पड़ता है? इस संस्था के अनुसार अगर एक पिता कामुक भावनाओं में बहकर भी चूमता है तो यह पाप नहीं है।
यह सवाल भी पूछा गया था कि अगर एक पिता अपने बेटी को देखकर कामुक विचारों से परेशान हो जाता है तो यह पाप नहीं है।’ साथ ही, बेटी को कम से कम नौ वर्ष से अधिक की उम्र का होना चाहिए। इससे पहले दियानेट ने एक और फतवा जारी किया था और इसमें कहा गया है कि जिन लोगों की मंगनी हो गई है, उन लोगों (पुरुष या स्त्री) को एक दूसरे का हाथ नहीं थामना चाहिए क्योंकि इस्लाम में इसे हराम माना जाता है। इस बात को देखकर कुछ (इस्लामिक) देशों के लोग उन लोगों पर तब तक पत्थरों की बरसात कर सकते हैं जब तक कि वे मर नहीं जाते।