राकेश दुबे@प्रतिदिन। 2015 के नवम्बर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में पूरे 3.2 फीसद की गिरावट दर्ज हुई थी| दूसरा आंकड़ा बताता है कि दिसम्बर के महीने में खुदरा मूल्य सूचकांक में 5.61 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई है| बेशक, औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े चिंचित करने वाले हैं क्योंकि इस सूचकांक के हिसाब से विनिर्माण 4.4 फीसद नीचे खिसका है| इसमें भी पूंजीगत सामान क्षेत्र में पूरे 24 फीसद की गिरावट दर्ज हुई है, जिसका अर्थ यह है कि निवेश नहीं आ रहे हैं| वैसे, औद्योगिक उत्पादन में इस मंदी को निर्यातों में लगातार जारी गिरावट से भी जोड़कर देखा जा सकता है| 2014 के दिसम्बर से निर्यातों में लगातार बारहवें महीने में गिरावट दर्ज हुई है| वास्तव में निर्यातों में पूरे 5 फीसद की गिरावट दर्ज हुई है| निर्यात गिर रहे हैं, और घरेलू मांग है नहीं|
विश्व आर्थिक मंदी का हमारी अर्थव्यवस्था खासतौर पर निर्यात के मोर्चे पर उसके प्रदर्शन पर सीधे-सीधे असर पड़ रहा है] ‘मेक इन इंडिया’ का नारा पूरी तरह से विदेशी पूंजी को भारत में खींचने के आसरे है, लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था की जो स्थिति चल रही है, उसमें उत्पादन के लिए ऐसी पूंजी का खिंचकर आना बहुत ही मुश्किल है. हां! सट्टाबाजार, वित्तीय क्षेत्र, शेयर बाजारों और मुद्रा बाजारों में जरूर विदेशी फंड आ रहे हैं|
यह कहना कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्था बन गई है|ठीक नहीं है | वित्त मंत्रालय की वर्ध -मध्य समीक्षा में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर का अनुमान अब 7.2 फीसद कर दिया गया है, जबकि बजट में यही अनुमान 8-8.5 फीसद तक रखा गया था, लेकिन ये आंकड़े भी संदेहास्पद हैं क्योंकि ये जमीनी सच्चाइयों से मेल नहीं खाते| चाहे औद्योगिक उत्पादन का मामला हो या कृषि उत्पादन का, हालत खस्ता है|अब जबकि 2016 में विश्व मंदी का खतरा सिर पर मंडरा रहा है, मोदी सरकार को मौजूदा दीवालिया नीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ेगा| जरूरत इस बात की है कि सार्वजनिक निवेश में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी की जाए, लेकिन यह तभी संभव है जब सरकार अमीरों पर कर बढ़ाकर अतिरिक्त संसाधन जुटाए| सार्वजनिक खर्चों में कटौतियों को पलटे, लेकिन इसके कोई आसार नहीं कि, यह सरकार जो वित्तीय पुराणपंथ के खूंटे से बंधी है, ऐसा कुछ भी करेगी|
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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