माफिया+IFS+IAS=1000 करोड़ का बालाघाट लकड़ी घोटाला

भोपाल। बालाघाट पुलिस ने प्रदेश के सबसे बड़े लकड़ी घोटालों को सामने लाने की शुरुआत कर दी है। अनुमान के अनुसार एक हजार करोड़ से अधिक का यह घोटाला जल्द ही 21 एफआईआर की शक्ल में सामने आएगा।

लकड़ी माफिया ने वन विभाग और राजस्व विभाग के अफसरों से मिलीभगत कर ये घोटाला किया। घोटाले की इस लकड़ी का एक हिस्सा इंदौर भी पहुंचा है। जिसकी जांच जारी है।

बालाघाट पुलिस एक लकड़ी घोटाले की जांच कर ही रही थी कि यह नया घोटाला सामने आ गया। अकेले 2014-15 में ही 35 आदिवासियों की जमीन पर लगे सागौन और साल के हजारों पेड़ों को मिलीभगत से ठिकाने लगाने का खुलासा हुआ है।

एक ही TP का कई बार उपयोग
माफिया का नेटवर्क इतना तगड़ा होता था कि लकड़ी परिवहन के रास्ते में पड़ने वाले नाकों पर टीपी में विभागीय सील नहीं लगने देता था। चूंकि टीपी अमूमन एक माह तक वैध होती है। उस समयावधि में एक ही टीपी से कई बार परिवहन कर लेते थे।  

बालाघाट कलेक्टर ने कभी कार्रवाई नहीं की 
म.प्र. आदिम जनजातियों का संरक्षण (वृक्षों के हित) अ्धिनियम में सिर्फ कलेक्टर को यह अधिकार है कि वह आदिवासी को सिर्फ उसकी जरूरत का आंकलन कर उसकी निजी जमीन पर लगे पेड़ को काटने की अनुमति दे सकता है। बची लकड़ी बाकी हिस्सा वन विभाग जप्त कर लेता है। बालाघाट में इस मिलीभगत के चलते अधिनियम की अनदेखी हुई। 

अब तक 18 गिरफ्तार
मुख्य सरगना राकेश डेहरवाल और संजय दोहरे सहित 18 लोग पुलिस हिरासत में हैं। दो वन अधिकारियों पर तीस हजार रुपए का इनाम घोषित किया जा चुका है। कलेक्टर और एडीएम की भूमिका जांच के दायरे में है।  

एक ट्राला और केवल चार लट्‌ठे  
बालाघाट आईजी सागर बताते हैं कि वन विभाग के लकड़ी डीपो से नाममात्र की लकड़ी खरीदी जाती और किसी ने यह देखने की जरूरत नहीं समझी, एक बड़े ट्राले में केवल चार-छह लट्‌ठे कैसे जा रहे हैं। वन विभाग रेंज आफिस में भी परमिट जारी करने का रिकार्ड नहीं है।  

आदिवासियों को पता ही नहीं उनके नाम पर क्या खेल हो गया 
माफिया ऐसे आदिवासियों को चिह्नित करता था जिनकी निजी जमीन पर कीमती पेड़ लगे हुए हों। उनके पेड़ों को काटा जाता फिर एडिशनल कलेक्टर नाममात्रा का जुर्माना कर मामला रफा-दफा कर देते। जैसे बुतसिंह आदिवासी की निजी जमीन पर लगे लगभग 10 करोड़ रु. के पेड़ काटे गए और नियमानुसार मामले में एफआईआर दर्ज करने के बजाए महज 18 हजार का जुर्माना लगाया। जबकि बुतसिंह कभी कलेक्टर कार्यालय गया ही नहीं। आदिवासियों के ऐसे 35  मामले सामने आ चुके हैं।

सरगना राकेश डेहरवाल नीलामी से नाममात्र की लकड़ी खरीदकर परीवहन के लिए जरूरी ट्रांजिट परमिट (टीपी) बनवाता। टीपी में लट्‌ठों की संख्या अंकों में लिखी जाती थी। बाद में। हैर फेर कर संख्या बढा नई टीपी बना दी जाती थी। 280 टीपी जांच में सामने आ चुकी है।

शुरू में चार एफआईआर की थी। आगे जांच की अब तक 280 फर्जी टीपी पकड़ी जा चुकी है। आज दस एफआईआर और हो चुकी है। पूरे घोटाले का आकड़ा एक हजार करोड़ रुपए को भी पार कर सकता है। 
दिनेश चंद्र सागर, पुलिस महानिरीक्षक, बालाघाट
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