मनोज मराठे। आदरणीय मामा जी हम अध्यापक 1998 से लेकर आज तक अपने आप को शिक्षक होकर भी, जो दुनिया मे एक सम्मानजनक पद है, परन्तु रहकर भी ठगा-ठगा सा व साथी कर्मचारियो की तुलना मे अपमानित महसूस कर रहे है. क्योंकि जब हम दोनो बाजार मे दूध खरीदने जाते है तो दोनो से डेरी वाला एक जैसा मूल्य मॉगता है। पर जब हम दोनो एक ही स्थान पर एक समान कार्य करते है तो भी उनका वेतन दुगुना व हमे आधा मिलता है. आखीर उनमे कौनसी अतिरिक्त योग्यता जो हम मे नही है | फिर ऊपर से आपकी छवि भी तो देश मे ईमानदार नेतृत्व की है फिर हमारे साथ क्यो न्याय नही कर रहे हो.
जब छत्तीसगढ से अच्छा देने को बोला कम से कम उसके जैसा तो दे देते, जिससे धीरे-धीरे सब का भला हो जाता। पर आप तो तारीक पे तारीक, अन्दोलन पे आन्दोलन के लिए विवश कर रहे हो| अब आपने खुले दिल से किसी बहाने बुलवा ही लिया हे ये हमारे लिए गर्व की बात है पर ये भी बात की बात है की अब बुलावा दे ही दिया है, तो हम भी बडी आशा के साथ मंदिरों, कोई मस्जिदों, तो कई गिरजाघरों, गुरुद्वारों मे माथा टेक शुभकामनाएं, दुवाएँ व अपने बुजुर्ग माता पिता का आर्शीवाद लेकर बडी आशा से आ रहे है | बडे विश्वास के साथ अब खाली हाथ व हक से कम देकर मत लौटाना नही तो दिल टूट जायेगा व दर्द ही दर्द उभर कर सामने आयेगा बाकी क्या लिखू ये सारे भारत का मिडीया व सरकार को सभी जानते है, हमे क्या देना है ? और क्या दिया जा रहा है? और हम क्या मॉंग रहे है?
मनोज मराठे
प्रमोशन से वंचित वरिष्ठ अध्यापक
७५८१८८०८८८