
बुजुर्ग दंपति का कसूर बस इतना था कि उन्होंने अपने बेटे को पढ़ने के लिए गांव से बाहर भेजा। उनका आरोप था कि बुजुर्ग दंपति ने अपने बेटे को मुखबिर बनाया है। सारी रात बुजुर्ग दंपति दर्द से कराहते रहे। सुबह होते ही उन्होंने गांव छोड़ दिया।
भानुप्रतापपुर ब्लॉक के इस गांव में 10 दिसंबर की रात 15-20 हथियारबंद नक्सली पहुंचे थे। उन्होंने ग्रामीणों को गांव के चौराहे पर जन अदालत में पहुंचने का फरमान सुनाया। इसके बाद तीन ग्रामीणों कंगलूराम, दिनेश सलाम व पहाड़ सिंह को बुजुर्ग दंपति को बुला लाने भेजा। रात लगभग 9 बजे तीनों ग्रामीणों ने बुजुर्ग आदिवासी घसियाराम (59) के घर का दरवाजा खटखटाया।
ग्रामीणों ने घसियाराम व उसकी पत्नी सुक्कूबाई (54) को नक्सली फरमान का हवाला देते हुए गांव के चौराहे पर जन अदालत में चलने कहा। चौराहे पर भयभीत ग्रामीणों के अलावा करीब एक दर्जन हथियारबंद नक्सली मौजूद थे। इनमें सोनू, रमेश व महिला नक्सली सगो को घसियाराम पहचानता था, इनके अलावा कई संघम सदस्य भी वहां थे। नक्सलियों ने घसियाराम व उसकी पत्नी पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने बेटे दुआरूराम सलाम को पढ़ाया-लिखाया व नौकरी के लिए भानुप्रतापपुर भेजा।
नक्सलियों ने उनके बेटे पर पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगाया और गांव वालों के सामने ही लात, जूते और डंडों से उनकी बेदम पिटाई। बूढ़ी सुक्कूबाई कहती रही कि बेटे को बर्खास्त कर दिया गया है लेकिन उनका दिल नहीं पसीजा। वे चीखते और मदद की गुहार लगाते रहे लेकिन मौके पर मौजूद ग्रामीणों में से कोई भी हथियारों से लैस नक्सलियों का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाया।
नक्सली दोनों बुजुर्गों का बेसुध होते तक पीटते रहे। करीब दो घंटे तक दहशत मचाने के बाद नक्सली ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं व पुलिस से दूर रहने की चेतावनी देते हुए चले गए। बेसुध घसियाराम ने भोर होते ही गांव छोड़ दिया और भानुप्रतापपुर आकर थाने में शरण ली।