
- दलीलें दी जा रही हैं कि
- पाटीदार भी इसी तरह की क्रांतिकारी बाते किया करते थे। जैसी भरत पटेल कर रहे हैं।
- पाटीदार भी समाधान के बजाय आंदोलन में यकीन रखते थे और अब भरत पटेल भी।
- पाटीदार भी मीटिंगों में बखेड़ा खड़ा किया करते थे, अब पटेल भी।
- पाटीदार को भी कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाला बताया जाता था, पटैल के कांग्रेसी रिश्ते भी जग जाहिर हैं।
- पाटीदार चाहते तो शुरूवाती आंदोलनों में ही समान वेतन और संविलियन हो जाता परंतु उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया। ताकि राजनीति चमकती रहे।
- भरत पटेल चाहते तो सितम्बर के आंदोलन में ही संविलियन हो जाता। परन्तु उन्होंने बिना योजना भूख हड़ताल शुरू की ओर बिना आग्रह समाप्त भी कर दी। 3 दिन की जेल में सारी क्रांति पिघल गई और सशर्त जमानत लेकर बाहर आये।
और भी कई समानतायें हैं दोनों नेताओं के बीच लेकिन लव्वोलुआव एक कि आंदोलन बना रहे और समाधान भी किस्तों में आये। यदि भरत पटेल भूख हड़ताल न तोड़ते, या फिर जेल में सरकारी शर्तों के आगे घुटने न टेकते तो सरकार को झुकना पड़ता यह सुनिश्चित था। यह सच पटेल भी जानते थे फिर भी उन्होंने बार बार यूटर्न लिया। शांति के समय आंदोलन और आंदोलन के चरम पर पलट जाने की राजनीति लगातार हो रही है।
अध्यापकों को संशय है कि कहीं यह समस्याओं को जिन्दा बनाये रख अपनी राजनीति चमकाने का कार्यक्रम तो नहीं।