नये वेतनमान :आसान नही है राह

राकेश दुबे@प्रतिदिन। शासकीय कर्मचारी 1 जनवरी 2016 से नये वेतनमान के हकदार होंगे | भले आज देश की अर्थव्यवस्था उतनी अच्छी न हो, लेकिन मोदी सरकार की माली हालत बेहतर है। कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में आई भारी कमी और सबसिडी बिल में कटौती के कारण उसके हाथ में पर्याप्त पैसा है, जिससे अगले वित्त वर्ष से नए वेतन लागू करने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। मुश्किल बाद के वर्षों में आ सकती है।

बजट विशेषज्ञ जानते हैं कि केंद्रीय राजस्व का करीब ५५ प्रतिशत पैसा ऐसा है, जिसे सरकार किसी भी सूरत में छेड़ नहीं सकती। इसकी हर मद तय है। इसमें से दस प्रतिशत से अधिक पैसा कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में निकल जाता है और काफी बड़ा हिस्सा सबसिडी और जन-कल्याण से जुड़ी योजनाओं के लिए आरक्षित होता है। यों वेतन आयोग का असर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र ०.६५  प्रतिशत आंका जा रहा है। मोटे तौर पर माना जा सकता है कि केंद्र तो जैसे-तैसे एक लाख करोड़ रुपए का जुगाड़ कर लेगा, लेकिन राज्य सरकारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। अधिकतर राज्य वित्तीय संकट में घिरे हैं। अगर वे अपने कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ देना चाहते हैं, तो उन्हें अतिरिक्त धन का जुगाड़ करना पड़ेगा, जो अग्निपरीक्षा से गुजरने जैसा है।

नए कर लगा कर या मौजूदा करों में इजाफा करके और पैसा जुटाया जा सकता है। कर वृद्धि का अर्थ है आम जनता पर अतिरिक्त बोझ, जिसे अच्छे दिनों का लक्षण कतई नहीं माना जा सकता। दूसरा विकल्प खर्च में कटौती है। इसका मतलब है कि विकास योजनाओं पर कैंची चलाई जाए, जिसका खमियाजा भी अंतत: आम जनता को भोगना पड़ेगा। जाहिर है कि वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद सरकार का खर्चा बढ़ जाएगा और उसके लिए वित्तीय अनुशासन का अपना संकल्प पूरा करना कठिन हो जाएगा। ऐसे में राजकोषीय घाटा कम कर वर्ष २०१६ -१७ में ३.५ प्रतिशत और वर्ष २०१७ -१८ में तीन प्रतिशत पर लाने का सपना पूरा होना असंभव है। फिलहाल केंद्र और सभी राज्य सरकारों का मिलाजुला घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह प्रतिशत  से ऊपर बैठता है, इसलिए अकेले केंद्र की सदिच्छा से इस मर्ज पर काबू नहीं पाया जा सकता। दूसरी दिक्कत बढ़ते कर्ज का बोझ है। सरकार भारी उधारी (जीडीपी का ६५  प्रतिशत) में दबी है, इसलिए नए वेतन के भारी खर्चे को सहन करने के लिए उसकी आय में इजाफा जरूरी है। लेकिन देश और दुनिया की मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों में आमदनी बढ़ाना आसान नहीं दिखता। 

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 

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