राकेश दुबे@प्रतिदिन। पूरा देश जलायेगा, आज दीया! पहला दीया देश के लिए, देश में सभी सुखी हो। दूसरा, पुरखों की याद में तुलसी के चौबारे पर, जिनके आशीष से हम फले-फूले। तीसरा दीया घर में ब्याही पर, परदेश जा बसी बेटी के लिए, घर की छत पर और चौथा, चार बाती वाला दीया, परिवार को पाल रहे बेटे के मार्गदर्शन के लिए, जहाँ रहे आलोकित हो।
प्रेम अक्षय और अनंत, सदा चर-अचर, दृश्य-अदृश्य, भूत और भविष्य सबके लिए! दीपावली का यह भाव सबसे नहीं सधता। उनसे तो एकदम ही नहीं सधता, जिनके भीतर रोशनी को मुट्ठी में करने लेने के दंभ होते हैं, जो समझते हैं कि प्रकाश तो एक व्यवस्था है, जिसको जलाने और बुझाने का खिलवाड़ एक अंगुली के इशारे से किया जा सकता है लेकिन नहीं, हर भारतवासी जानता है कि रोशनी को कैद नहीं किया जा सकता। इसीलिए हम रौशनी बांटे, अपनों के लिए, देश तो सबसे पहले अपना है। इसी भाव से इस दीपावली पर दीपों की एक पांत हम भी सजाएं। चर-अचर, सबके लिए मंगलकामनाओं के साथ।
और हमेशा की तरह इस बार भी यह दीया किसी एक देव के लिए नहीं हो। दीपावली का यह दीया धरती से लेकर आकाश तक मौजूद हर देव, पितर, यति, यक्ष, मनुष्य, लता, गुल्म, वृक्ष, नदी, पहाड़ यानी चर-अचर सबके लिए हो। दीया जलानेवाले के हाथ जानते हैं कि हर दीया चाहे जितना अनूठा हो, लेकिन उसकी शोभा पंक्ति में होने से ही है. अकेले का कोई दिया नहीं शोभता। दीये का अर्थ प्रकाश है, हे प्रभु सब जगमग कर दो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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