इंदौर। यह अकेला ऐसा युद्ध है जिसे लड़ने में लोगों को आनंद आता है। लोग घायल हो जाते हैं परंतु खुश होते हैं। इस बार भी 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इंदौर से करीब 60 किलोमीटर दूर गौतमपुरा में गुरुवार शाम को गोधूलि बेला में शुरू हुए इस हिंगोट युद्ध में 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। बारुद से भरे गोलों ने इस परंपरागत युद्ध में शामिल कुछ लोगों को गंभीर रूप से जख्मी कर दिया। इस आयोजन का गवाह बनने के लिए हजारों की तादात में मौजूद कुछ लोग भी हिंगोट की चपेट में आने से घायल हो गए। घायलों के लिए स्थानीय तौर पर ही इलाज के बंदोबस्त किए गए थे। गंभीर रूप से घायल सभी लोगों को 108 एम्बुलेंस की मदद से इंदौर रेफर किया गया।
वर्षों से चली आ रही परम्परा के मुताबिक, दीपावली के अगले दिन शुक्ल पक्ष की प्रथमा को गौतमपुरा के हिंगोट मैदान में हिंगोट युद्ध होता है। इस हिंसक युद्ध में दो दलों के बीच मुकाबला होता है। एक दल को तुर्रा तो दूसरे को कलंगी नाम दिया जाता है। इस युद्ध में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागी एक दूसरे पर बारूद से भरे हिंगोट से हमला करते हैं।
क्या होता है हिंगोट
पारम्परिक हिंगोट युद्ध को लेकर देपालपुर के करीब स्थित गौतमपुरा में लोगों में खासा उत्साह रहता है, यही कारण है कि इस इलाके मे दीपावली के पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। गौरतलब है कि हिंगोट एक फल होता है जो नारियल जैसा होता है. बाहरी आवरण कठोर होता है तो भीतरी गूदे वाला। खासियत यह है कि यह फल सिर्फ देपालपुर इलाके में ही होता है।
कैसे बनता है खतरनाक 'रॉकेट'
हिंगोट को हथियार बनाने के लिए फल को अंदर से खोखला कर दिया जाता है, फिर कई दिनों तक इसे सुखाया जाता है। इस फल के पूरी तरह सूखने के बाद इसके भीतर बारूद भरी जाती है, तथा एक ओर लकड़ी लगा दी जाती है। युद्ध के दौरान जब इस फल के एक हिस्से में आग लगाई जाती है तो वह ठीक रॉकेट की तरह उड़ता हुआ दूसरे दल के सदस्यों को आघात पहुंचता है।
हाथ में ढाल लेकर युद्ध
इस युद्ध में हिस्सा लेने वाले दलों के प्रतिनिधि पूरी तैयारी से पहुंचते हैं. जहां सुरक्षा के लिए हाथों में ढाल होती है तो सिर पर बड़ा से साफा (कपड़े की पगड़ी) बांधे रहते हैं। उसके बावजूद कई लोग घायल हो जाते हैं।