डोल ग्यारस की कथा एवं महत्व

सुशील कुमार शर्मा। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस का उत्सव मनाया जाता है। पुराणोक्त   मान्यताओं के अनुसार इस दिन कृष्ण के जन्म के अठारह दिन बाद यशोदा जी ने उनका जलवा पूजन किया था। उनके सम्पूर्ण कपड़ों का प्रक्षालन किया था उसी के अनुसरण में ये डोल ग्यारस का त्यौहार मनाया जाता है। इसी  कारण  से इस एकादशी को जल झूलनी एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी में चन्द्रमा अपनी ग्यारह कलाओं में उदित होता है जिस से मन अति चंचल होता है अतः इसे वश में करने के लिए इस पद्मा एकादशी का व्रत रखा जाता है। किवदंती है की इस दिन विष्णु भगवान शयन करते हुए करवट बदलते हैं इस कारण से इस एकादशी को परिवर्तनी एकादशी भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है की भगवान विष्णु हर चातुर्मास को अपना बलि को दिया हुआ वचन निभाने के लिए पाताल में निवास करते हैं। इस पद्मा एकादशी को निम्न श्लोक से उनकी पूजन करनी चाहिए।

देवेश्चराय देवाय देव संभूति कारणे। 
प्रभवे सर्वदेवानां वामनाये नमो नमः।

इस त्यौहार की शुरुआत गणेश चतुर्थी पर गणेश स्थापना के साथ ही हो जाती है। श्री गणेश जो बुद्धि के देवता हैं ,प्रथम पूज्य हैं। वो आध्यात्म एवं जीवन के गहरे रहस्यों के अधिष्ठाता हैं।  जीवन के प्रबंधन के सूत्राधार श्री गणेश नगर में सर्वत्र व्याप्त हो जाते हैं। नगर का हर बच्चा श्री गणेशमय हो जाता है। घर के चादरों से छोटे -छोटे पंडाल बना कर बच्चे श्री गणेश की मूर्तियों की स्थापना करते हैं तो ऐसा लगता है की जैसे नन्हे -नन्हे पौधे बड़े वृक्ष बनने की तैयारी कर रहे हों। हर बच्चे के आराध्य श्री गणेश हैं जो उन्हें अपने गुणों से आकर्षित करतें हैं उनके सूप जैसे कान जो कचड़े को बाहर फेंक कर सिर्फ सार ही ग्रहण करतें हैं। सूक्ष्म आँखे जो आपके अंतर्मन को पढ़ लेती हैं ,उनकी सूँड़ दूरदर्शिता की परिचायक है। श्री गणेश का उदर विशाल हृदय का प्रतीक है जो सारी  अच्छी बुरी बातें पचा जाता है। सभी बच्चे इन गुणों को अपने में  संजोने के लिए ही शायद श्री गणेश की स्थापना करतें हैं।
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