क्या अध्यापको में सुप्त ज्वालामुखी धधका गया आंदोलन....?

एन रमेश@त्वरित टिप्पणी/भोपाल। कहावत है" रात भर पीसा सुबह नाली में सकेला",अध्यापको के आंदोलन का दमनात्मक पटाछेप भाजपा के लिए कुछ इसी कहावत को चरितार्थ करता नजर आ रहा है, पिछले तीन विस चुनावों में विजयी पताका फहराने में अध्यापकों का यह भारी भरकम कुनबा भाजपा के लिए न केवल एक बडे वोट बैंक बल्कि अघोषित कार्यकर्ता के रुप में काम करता रहा है, इसके पीछे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का सकारात्मक रवैया, अध्यापकों को समय समय पर कुछ न कुछ राहत देने की इच्छा और क्रियान्वयन कारगर साबित होता रहा, तो वहीं कांग्रेस कही न कही इस वर्ग की उपेक्षा का दंश सत्ता से दूर रहकर झेलती चली आ रही है पर 25 सितंबर को सरकार का आंदोलन के प्रति दमनात्मक रवैया पूरे किये कराए पर पानी फैरता नजर आ रहा है। 

अध्यापक हड़ताल से तो लौट गए पर सरकार, खासतौर पर भाजपा के प्रति एक सुप्त ज्वालामुखी इस वर्ग के भीतर धधका गया है, 2018 में यदि यह ज्वालामुखी फटा तो भाजपा को सत्ता से दूर कर सकता है, इधर प्रदेश में वेंटिलेटर पर जा पहुंची कांग्रेस को भाजपा से इस बड़े वर्ग की रुसवाई संजीवनी की मानिंद नजर आ रही हैं। 

सोशल साइट्स पर सरकार व भाजपा के खिलाफ आग उगलती इस वर्ग की पोस्ट बताने को काफी है कि यह कुनबा किस कदर सरकार के रवैये से कुंठा महसूस कर रहा है, बीते रोज भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार के बयान ने तो मुख्यमंत्री के डैमेज कंट्रोल के प्रयासों को भी फिलहाल बेकार कर दिया है। सत्तासीन दल के लिए सरकार की खामियों और उसके प्रति नाराजगी पर अाहत अवाम को मरहम लगाने की जिम्मेदारी पार्टी संगठन की होती है पर इस मामले में नंदकुमार चौहान का बयान सरकार से भी कई गुना कडवा व आक्रोश को भड़काने वाला नजर आया। 

सवाल यह भी खड़ा हो गया कि इस पूरे आंदोलन पर संगठन का कथित कडा रुख प्रायोजित तो नहीं है, क्योंकि भाजपा में एक बड़ा तबका सीएम शिवराज को लंबे समय से घेरने पर आमादा है, और भाजपा में अंदरूनी तौर पर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है...फिलहाल ये तो तय है कि बेनतीजा खत्म हुये इस आंदोलन की कोख में प्रदेश की राजनीति को लेकर एक निर्णायक नतीजा पल रहा है।
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