दिल्ली में बने कानून इंदौर में बदल डाले

Bhopal Samachar
राजेन्द्रत बंधु। यह स्पष्ट है कि भारत के संविधान ने कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद और राज्य विधानसभाओं को सौपी है। किन्तु मध्यप्रदेश के इन्दौर शहर के नौकरशाह भी इस मामले में पीछे नहीं है। वे अपनी मर्जी से कानून बना रहे हैं और संसद द्वारा बने कानूनों में अपनी मर्जी से संशोधन कर रहे हैं।

यहां एक के बाद एक कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां विभिन्न विभागों के अधिकारियों द्वारा अपनी मनमर्जी के नियम लागू किए गए। यह जनता की मजबूरी है कि वह नौकरशाहों के हुक्म का पालन करें, अन्यथा उनके जरूरी काम नहीं हो पाएंगे। यानी जनता की हालत ‘‘तुम दिन को रात कहो, तो हम रात कहेंगे’’ वाली हो गई है।

विवाह पंजीयन में अजीब शर्त
इन्दौर जिले के नौकरशाहों द्वारा जारी नियम के मुताबिक यहां आपका विवाह पंजीयन तभी हो सकता है, जब आप संतान पैदा करने में सक्षम है। इसके लिए लोगों को एक शपथ पत्र पर संतान उत्पन्न करने की क्षमता का उल्लेख करना होता है। याद रखें कि शपथ पत्र में गलत जानकारी देना दण्डनीय अपराध माना गया है। अतः इन्दौर के विवाह अधिकारी (एडीएम) के कार्यालय में विवाह पंजीयन हेतु जाने वालों को इस बात की मेडिकल जांच जरूर करवा लेनी चाहिए कि संतान पैदा कर सकते हैं या नहीं। यह बात चाहे कितनी ही हास्यास्पद लगे, किन्तु इन्दौर जिले में विवाह पंजीयन करवाने वाले लोग इस आशय के शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने को विवश है। स्पष्ट है कि ‘‘विशेष विवाह अधिनियम 1954’’ में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। विवाह पंजीयन हेतु जो शपथ पत्र उपयोग में लाया जाना चाहिए उसमें सिर्फ पांच बिन्दुओं की जानकारी देना जरूरी है, जिसें गोत्र, नाम, पता, उम्र और व्यवसाय शामिल है किन्तु इन्दौर में उपयोग किए जा रहे शपथ पत्र पर 12 से ज्यादा बिन्दुओं की जानकारी मांगी जा रही है, जिसमें संतान उत्पन्न करने की क्षमता का भी उल्लेख है।

घरेलू हिंसा कानून ही बदल डाला
सन् 2005 में भारत की संसद द्वारा पारित ‘‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण’’ अधिनियम में भी यहां संशोधन किया जा चुका है। सरकार द्वारा जारी नियम के अनुसार घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला को पुलिस थाने जाना अनिवार्य नहीं है, बल्कि वे संरक्षण अधिकारी के कार्यालय में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती है। प्रदेश में जिला महिला बाल विकास विभाग अधिकारी को संरक्षण अधिकारी के रूप में जिम्मेदारी सौपी गई  है किन्तु इन्दौर जिले के सरंक्षण अधिकारी द्वारा हिंसा से पीड़ित महिलाओं को पुलिस थाने में भेजा जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि ‘‘घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं का संरक्षण अधिनियम’’ पारित करने के पीछे मूल भावना यह थीं कि पीड़ित महिलाओं को पुलिस थाने के चक्कर नहीं लगाना पड़े और आसानी उनके प्रकरण दर्ज होकर उन्हें न्याय मिले सके किन्तु यहां उसी बात को लागू किया गया है, जिस बात को लेकर पूरा कानून पारित किया गया। इन्दौर जिले में हिंसा से पीड़ित कई महिलाएं पुलिस थाने के चक्कर लगाकर परेशान है, किन्तु न तो उनके प्रकरण दर्ज होते और न ही उन्हें कोई कानूनी मदद मिल पा रही है। संरक्षण अधिकारी पीड़ित महिला को पुलिस थाने भेजकर जिम्मेदारी से मुक्त हो गए हैं।

RTO के अपने कानून
यहां एक और नया नियम जिला सड़क परिवहन अधिकारी द्वारा बनाया गया है। उनके अनुसार यदि आप इन्दौर जिले में दुपहिया वाहन खरीद रहे हैं तो उस वाहन का रजिस्ट्रेशन तभी होगा, जब आप आवेदन के साथ हेलमेट खरीदने का मूल बिल संलग्न करें। यदि आपके पास पहले से ही हेलमेट है तब भी आपको हेलमेट खरीद कर बिल बनवाना होगा। जबकि ‘‘मोटर व्हीकल एक्ट’’ में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। जिला सड़क परिवहन अधिकारी के इस हुक्म से हेलमेट के दुकानदारों की चांदी हो गई है। वे सौ से डेढ़ सौ रूपए मे बिल बना रहे हैं। यानी हेलमेट खरीदना जरूरी नहीं, सिर्फ बिल बनवाना जरूरी है। जिला सड़क परिवहन अधिकारी ने कुछ महिनों पहले एक और फरमान जारी किया था, जिसके अनुसार सभी पेट्रोप पंपों को यह निर्देश दिया गया था कि ‘’जिन दुपहिया वाहनों के चाहक बगैर हेलमेट पहले आएं, उन्हें पेट्रोल विक्रय नहीं करें।‘’ बाद में मध्योप्रदेश उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इस आदेश को रद्द कर दिया कि ‘‘मोटर व्हीकल एक्ट’’ में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

दरअसल, अपनी मनमर्जी के नियम बनाने के पीछे नौकरशाही का सत्ता सुख है। नौकरशाही द्वारा अपनी सहूलियत के लिए निर्देष जारी कर दिए जाते हैं, जबकि उससे लोग परेशान होते हैं। दूसरी बात यह है कि नौकरशाहों द्वारा जारी नियमों को चुनौती देने के लिए भी लोग आगे नहीं आते। इससे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने संकट पैदा हो जाता है। क्योकि यह प्रक्रिया न सिर्फ अराजकतावादी है, बल्कि यह भारत के संविधान का भी उल्लंघन है। साथ ही इसे भारत के संसदीय ढांचे और संसद व विधान सभाओं की अवमानना के रूप में भी देखा जा सकता है। किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे फरमान जाने करने वाले नौकरशाहों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती।

राजेन्द्र बंधु
निदेशक: समान-सेंटर फॉर जस्टिस एण्ड इक्वलिटी
163, अलकापुरी, मुसाखेड़ी, इन्दौर (म.प्र.) पिन: 452001
फोन: 8889884676
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