भोपाल। पिछले दिनों हुए दनादन तबादलों में कुछ ऐसे कर्मचारियों का ट्रांसफर कर दिया गया जो नियम विरुद्ध था। मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों के बाद अब विकलांग कर्मचारियों के ट्रांसफर का मामला सामने आया है। उल्लेखनीय तो यह है कि तबादला करने के बाद अधिकारियों ने पीड़ित की सुनवाई ही नहीं की। उसे न्यायालय की शरण में जाना पड़ा।
उच्च शिक्षा विभाग में ट्रांसफर की पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में आ गई है। इसी मामले में हाईकोर्ट द्वारा सीधे मुख्य सचिव मध्य प्रदेश शासन को ही नोटिस जारी कर देने से विवाद बढ़ गया है। दो दिन पहले ही हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने मुख्य सचिव मप्र शासन सहित पांच अफसरों का नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इनमें प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन व उच्च शिक्षा विभाग और कमिश्नर उच्च शिक्षा शामिल है। इस मामले की अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी।
उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जून माह में किए गए 1300 प्रिंसिपल, प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, लाइब्रेरियन और स्पोर्टस अधिकारियों के तबादले किए थे। प्रोफेसरों का आरोप है कि इन तबादलों में विभाग ने शासन की स्थानांनतरण नीति का सीधे तौर पर उल्लंघन किया है। विभाग द्वारा किए गए तबादलों के खिलाफ लगातार याचिकाएं हाईकोर्ट में लग रही हैं। विभाग को इसी कारण पिछले दिनों कई तबादले निरस्त करने पड़े हैं।
सूत्र बताते हैं कि विभाग के स्तर पर हुई यह गड़बड़ी मुख्य सचिव मप्र शासन को नोटिस जारी करने के बाद सामने आने लगी है। इसी मामले में सामान्य प्रशासन विभाग तीन बार उच्च शिक्षा विभाग को पत्र लिख चुका है। प्रोफेसरों का कहना है ट्रांसफर करते समय विभाग ने स्वास्थ्य और विकलांगता के पहलुओं को सीधे तौर पर नजरअंदाज किया है। पिछले दिनों विभाग ने जितने भी ट्रांसफर निरस्त किए हैं उनमें ज्यादातर मामले स्वास्थ्य से ही जुड़े थे।