रहस्य बरकरार: अंग्रेजों की लाशें बिछाने वाला गुंडाधूर कौन था

रायपुर। 1910 में बस्तर में हुए भूमकाल आंदोलन के नेताओं में गुंडाधूर ही एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिसे अंग्रेजी सरकार जिंदा या मुर्दा पकड़ने में नाकामयाब रही। गुंडाधूर के बारे में अंग्रेजों की फाइल को इस टिप्पणी के साथ बंद कर दिया गया कि 'कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुंडाधुर कौन था’।

भूमकाल विद्रोह: 75 दिनों का खूनी संघर्ष
अंग्रेजों का इतिहास बताता है कि किसी भी विद्रोह को कुचलने के लिए खूनी संघर्ष का इतना लम्बा काल कभी नहीं गुजरा। 2 फरवरी 1910 को पुसपाल बाजार की लूट से विद्रोह शुरू हो गया। एक के बाद एक इलाकों में कब्जा होता चला गया। 7 फरवरी को बस्तर के तत्कालीन राजा रुद्र प्रताप देव ने सेंट्रल प्राविंस के चीफ कमिश्नर को तार भेजकर विद्रोह की जानकारी दी और तत्काल सहायता की मांग की। विद्रोह इतना ताकतवर था कि था कि सेंट्रल प्रोविन्स के 200 सिपाही, मद्रास प्रेसिडेंसी के 150 सिपाही, पंजाब बटालियन के 170 सिपाही भेजे गए। 16 फरवरी से तीन मई 1910 तक ये टुकड़ियां विद्रोह के दमन में लगी रहीं।

75 दिनों तक बस्तर में खून की नदियां बहाई गईं। जो दिखा उसे मार दिया गया। अंग्रेजी सेना ने निर्दोष आदिवासियों को भी नहीं छोड़ा। नेतानार के आसपास के 65 गांवों से आये बलाइयों के शिविर को 26 फरवरी को अहले सुबह घेरकर 511 आदिवासियों को पकड़ लिया गया। नेतानार के पास अलनार के जंगल में हुए 26 मार्च के संघर्ष में 21 आदिवासी मारे गये। यहां आदिवासियों ने अंग्रेजी टुकड़ी पर इतने तीर चलाए कि सुबह तीर ही तीर नजर आ रहे थे।

सुबह हुई तो सबकुछ शांत हो चुका था। अंग्रेजी सेना के साथ साथ आदिवासियों की लाशें बिछी पड़ीं थीं, परंतु गुंडाधूर कहीं दिखाई नहीं दिया। सारी लाशों की शिनाख्त हो गई। अंग्रेजों को लगा कि मरने वालों में से ही किसी ने अपना नाम गुंडाधूर रख लिया होगा लेकिन 1912 के आसपास फिर लोगों को सांकेतिक भाषा में संघर्ष के लिए तैयार करने की कोशिश की गई और इससे पता चला कि गुंडाधूर तो जिंदा है।

गौरतलब है कि 1910 के विद्रोही नेताओं में गुंडाधूर ही न तो मारा जा सका और न अंग्रेजों की पकड़ में आया। गुंडाधुर के बारे में अंग्रेज सरकार की फाइल इस टिप्पणी के साथ बंद हो गई, "कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुंडाधुर कौन था? 
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