फैसला पाकिस्तानी है, पर भारत के लिए आईना है

राकेश दुबे @प्रतिदिन। पडौसी पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि महलनुमा प्रेसिडेंट्स हाउस, प्राइम मिनिस्टर्स हाउस और गर्वनरों के सरकारी आवास पर होने वाले ''भारी खर्च, इन आवासों में रहने वालों का खर्चीला रहन-सहन और जनता की कीमत पर सरकारी अधिकारियों को मिलने वाले लाभ- 'सरकारी नीति के विषय’ हैं जिनसे राजनीतिक सवाल जुड़े हैं।

भारत के कामकाज के मुकाबले यह फैसला कितना क्रांतिकारी है? 'पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'एक ऐसे देश में जो विदेशी कर्ज के बोझ से दबा है, जहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा के अभाव में जीता है, इस तरह की फिजूलखर्ची है नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।भारत के हालात अलग नहीं है।

फैसला भले ही पाकिस्तानी कोर्ट का हो , इसमें महात्मा गांधी की सलाह की गूंज सुनाई देती है जो उन्होंने आज़ाद भारत के विभिन्न पदों पर चुने गए लोगों को दी थी। उन्होंने कहा था कि उन्हें मालिकों की तरह नहीं, बल्कि ट्रस्टी की तरह व्यवहार करना चाहिए। वे चाहते थे कि उन्हें वेतन दिया जाए, ताकि उनके भत्ते लोगों की औसत आमदनी से ज्यादा भिन्न नहीं हों। सांसद, विधायक, नगरपालिकाओं या ऊंचे पदों के लिए चुने गए लोग शायद ही इसे मानते हैं। इस वास्तविकता से इंकार नहीं किया जा सकता, जैसा पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है, कि जनता की संपत्ति 'सरकारी पदों पर बैठे लोगों के हाथ में एक सार्वजनिक ट्रस्ट है।

भत्ता और लाभों को बढ़ाने की चुने हुए प्रतिनिधियों की सदा से की जाती मांग पर भी कोर्ट कोई कभी  टिप्पणी  नहीं करता । कभी ऐसा हो तो जिस  न्यायपालिका, जिसका अभी भी सम्मान है, उसके विरुद्ध राजनेताओं और उनके सहयोगियों के फिजूलखर्ची पर बहस शुरु करा देतेै

पश्चिम के विकसित और संपन्न देशों के नेता भी उनकी जीवन शैली की हम बराबरी नहीं कर सकते। इन नेताओ को कौन बताए कि वे पहले ही ऊंची आमदनी पाने वालों की श्रेणी में आते हैं? पहले मीडिया यह काम करता था। लेकिन आज मालिक, कई और व्यक्ति और कार्पोरेट सेक्टर के लोग इस पर निगरानी रखते हैं और यहां तक कि क्या छपना चाहिए, के अलावा यह भी बताते हैं कि खबर का शीर्षक क्या होना चाहिए। उनके व्यक्तिगत पक्षपात और झुकावों ने मीडिया के साथ बहुत अन्याय किया है। यह निश्चित तौर पर अफसोस वाली स्थिति है।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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