राकेश दुबे @प्रतिदिन। भारतीय संसद नहीं चल पा रही है बहुमत के बावजूद भारतीय जनता पार्टी सदन चलाने के बजाये जैसे तैसे करवाई धकाने को मजबूर है| सभी सांसदों को सोचना चाहिए कि राजा रजवाड़े या जमींदार क्यों गये? क्योंकि व्यवहार में सभी सत्ता उनके पास थी, पर जवाबदेही नहीं| आज भी यही है सत्ता तो
सब चाहते है , जवाबदेही कोई नही | इन सबको यह सोचना चाहिए की जिस काम को वे कर रहे है, उसमे जन हित कितना है और जनता की कितनी गाढ़ी कमाई उनके इस कृत्य से बेकार खर्च हो रही है |
लोकतंत्र के नये राजा हैं, विधायक-सांसद, मंत्री-मुख्यमंत्री वगैरह| अब इन नये राजाओं को रोज नये अधिकार चाहिए, पर जवाबदेही रत्ती भर नहीं| गृह मंत्रालय ने सभी सांसदों को गाड़ी पर लाल बत्ती लगाने का प्रस्ताव मान लिया था| कानून बनने के अंतिम क्षणों में सोनिया को लगा कि राजनेताओं-सांसदों-विधायकों के प्रति बढ़ती अनास्था-नफरत के दौर में हर सांसद को लालबत्ती लगाने का अधिकार देना, आग में घी डालने जैसा काम होगा| इसलिए फिलहाल ये प्रस्ताव रुक गया है|
सत्ता की यह भूख है, सांसदों की| विशिष्ट से अतिविशिष्ट बनने की भूख है सोचिये, जिन सांसदों पर गंभीर अपराध के आरोप हैं, वे भी लाल बत्ती लगा कर चलेंगे और अफसर व पुलिस के लोग भी लाल-पीली बत्तियों में घूमेंगे, तब कैसा दृश्य होगा? पिछले दिनों सारे सांसदों ने एक मत में कहा कि रेलवे के बड़े अफसर या डीआरएम हमारी बात नहीं सुनते, बात नहीं मानते, इसलिए उनके ऊपर समिति बना कर हमें उनके ऊपर डाल दिया जाये| इसका अपरोक्ष मतलब है, रेलवे का ठेका-पट्टा (टेंडर) वगैरह में हस्तक्षेप करना| इसमें जनहित कहाँ है? एक संसदीय समिति ने चुनाव आयोग के अधिकार में कटौती की मांग की है| चुनाव संहिता न मानने पर चुनाव आयोग की कार्रवाई के अधिकार में कमी की बात कही गयी है| पार्टियों के पंजीकरण रद्द करने से लेकर फर्जी चुनाव रद्द करने के चुनाव आयोग के अधिकार पर पाबंदी की रिपोर्ट आयी है. लोक भाषा में कहें, तो सांसद नख-दंत विहीन चुनाव आयोग चाहते हैं|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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