एक गांव को पानी में डुबाने वाली थी मप्र सरकार

जबलपुर। बिना मुआवजा आदिवासियों से गांव खाली कराने का सरकार ने एक आपराधिक साजिश को अंजाम दे डाला। सरकार ने खरगौन जिले के अपर वेदा बांध में पानी भरना शुरू कर दिया। इससे आदिवासी गांव डूबने की कगार पर आ गए। इस संवेदनशील मामले को मप्र हाईकोर्ट ने वक्त गुजर जाने के बावजूद सुना। 14 अगस्त की शाम पौने 6 बजे सुनवाई की और सरकार की हर हरकत पर स्टे आर्डर जारी किया। यदि यह आदेश जारी नहीं होता तो 15 अगस्त को जहां सारा देश आजादी का जश्न मना रहा होता, यहां एक गांव पानी में डूब जाता।

याचिका नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्ता सुश्री चित्तरूपा पालित ने लगाई थी एवं प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन की बेंच ने स्थगन आदेश जारी किए।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से दलील दी गई कि राज्य शासन के द्वारा 5 अगस्त से लगातार अपरवेदा बांध में पानी भरा जा रहा है। इससे सैकड़ों आदिवासियों के घर व खेत बिना पुनर्वास के वैकल्पिक इंतजामों के ही डूबना शुरू हो गए हैं। यदि तत्काल कदम नहीं उठाया गया तो स्थिति विकराल स्वरूप ले लेगी। हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। साथ ही अगली सुनवाई सोमवार को निर्धारित कर दी।

बड़ी राहत मिली
नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता व आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता व संयोजक आलोक अग्रवाल ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आदिवासियों के हित में मिली बड़ी राहत पर संतोष जताया है। शाम पौने 6 बजे के पूर्व नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित ने मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर को खरगोन की समस्या के बारे में सूचित किया। इसके बाद सीजे ने बिना देर किए इस मामले की सुनवाई के लिए प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन की स्पेशल बैच गठित कर दी।
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