भोपाल। अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष बने पूरा डेढ़ साल हो गया लेकिन आज तक वो अपनी प्रदेश कार्यसमिति नहीं बना पाए। लिस्ट बनती है और टल जाती है। पिछले तीन दिनों ने यादव दिल्ली में जमे हुए हैं, लेकिन सोनिया गांधी से मुलाकात ही नहीं कर पा रहे। सवाल यह है कि जो नेता डेढ़ साल में अपनी टीम ही नहीं बना पाया वो संगठन कैसे चलाएगा।
अरुण यादव बार बार यह इशारा करते रहे हैं कि प्रदेश कार्यसमिति को लेकर दिग्गजों के बीच सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है। एक प्रकार से वो अपना फेलियर गिनाते रहे हैं। बताया जा रहा है कि संसद सत्र के दौरान यादव ने प्रदेश के तकरीबन सभी बड़े नेताओं से मुलाकात कर प्रदेश कार्यकारिणी नए सिरे से बनाने पर सहमति प्राप्त कर उनसे समर्थकों के नाम भी ले लिए थे। यादव ने इसी आधार पर सूची तैयार कर केन्द्रीय संगठन को सौंप दी। उम्मीद थी कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद हर हाल में सूची जारी हो जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ।
अब यादव के भरोसेमंद साथियों का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष की अन्य व्यस्तताओं के चलते मामला अटका हुआ है। बताया जा रहा है कि बीते दिन से यादव दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन समय नहीं मिल सका।
कुल मिलाकर अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष तो बना दिया गया लेकिन ना तो मप्र के दिग्ग्ज उन्हें तवज्जो देते हैं और ना ही हाईकमान। प्रदेश कार्यसमिति के गठन जैसा महत्वपूर्ण काम अरुण यादव अब तक नहीं कर पाएं हैं। वो अपने ही संगठन में अपनी जगह नहीं बना पाए।
जिला ईकाईयों में बदलाव
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश कार्यकारिणी के साथ 12-13 जिला ईकाईओं में भी बदलाव होगा। इसमें भोपाल, जबलपुर, सीहोर सहित अन्य जिले शामिल बताए जा रहे हैं। इंदौर को लेकर शुरुआती दौर की चर्चा तो हुई पर बड़े नेताओं की रूचि को देखते हुए मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।