भोपाल/मप्र। शहर के पास रायसेन जिले में नर्मदा तट पर बोरास गांव है। यहां मेला लगा हुआ था। इसी मेले में 6 युवक तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़ रहे थे। थानेदार ने उन्हे ऐसा करने से मना किया। जब युवक नहीं माने तो थानेदार ने भोपाल हेडक्वार्टर को सूचना दी। वहां से आदेश मिलने के बाद थानेदार ने सभी 6 युवकों एवं तिरंगे को निशाने बनाते हुए गोलियां बरसा दीं। सभी युवक को शहीद हो गए लेकिन तिरंगे को उन्होंने जमीन पर नहीं गिरने दिया।
मामला आजादी के तुरंत बाद का है। दरअसल, 15 अगस्त 1947 को भारत तो आजाद हो गया था, लेकिन भोपाल रियासत उस समय भारतसंघ में शामिल नहीं हुई थी। यहां के लोग रियासत का भारत में विलय के लिए आंदोलन कर रहे थे।
14 जनवरी 1949 को बोरास में मकर सक्रांति का मेला भरा था। इस मेले में तिरंगा फहराने का निर्णय लिया गया। छह युवक तिरंगा फहराने के लिए आए। पुलिस ने पहले उन्हें मना किया, लेकिन वे नहीं माने। पुलिस ने इसकी जानकारी भोपाल पुलिस के डीआई और भोपाल के प्रधानमंत्री को दी। इसके कुछ ही देर बाद तिरंगा फहराने जा रहे छह युवकों को एक-एक करके गोली से भून दिया गया। मेले में भगदड़ मच गई और तिरंगा फहराने जा रहे युवक शहीद हो गए।
यह रहा घटना का आखों देखा हाल
उस समय प्रकाशित होने वाले अखबार नई राह के मुताबिक 16 वर्षीय धन सिंह जब वंदेमातरम गाते हुए तिरंगा फहराने जा रहा था, तो तत्कालीन थानेदार जाफर ने उसे गीत गाने से मना किया। धन सिंह नहीं माने और तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़े, तो उन्हें गोली मार दी गई।
धनसिंह के जमीन पर गिरने से पहले मंगल सिंह नामक किसान ने तिरंगा झंडा थाम लिया। मंगल सिंह को गोली मारी गई, ताे युवक विशाल ने झंडा थाम लिया। विशाल को भी गोली मार दी गई। तिंरगा झंडा तीनों लोगों के खून से लथपथ हो चुका था।
विशाल जमीन पर गिरता, इससे पहले उसने डंडे में से झंडा निकालकर अपनी जेब में रख लिया। इसके अलावा तीन और लोगों को भी गोली मारी गई। इस गोलीकांड के लिए नवाब आैर उनके प्रधानमंत्री को ही जिम्मेदार ठहराया गया।