पट्टे के रट्टे में उलझे हैं मप्र के सवा 2 लाख दलित

भोपाल। एक थे दिग्विजय सिंह, दलित वोटबैंक के सहारे मप्र का चुनाव जीतना चाहते थे, सो जी खोलकर पट्टे बांटे। ऐसी अंधाधुंध बंटाई हुई कि नदी, नाले, पहाड़ जंगल सबका पट्टा बांट दिया। दलित जब मौके पर पहुंचे तो ठगे से रह गए। कोई 13 साल पहले जो हाल तब था, वही हाल अब है। सरकार बदल गई लेकिन पट्टे के रट्टे यथावत हैं। करीब सवाल 2 लाख दलित हाथों में पट्टे लिए कब्जे का इंतजार कर रहे हैं।

दरअसल 1999 से 2002 के बीच म.प्र सरकार ने निर्धन भूमिहीन दलित–आदिवासी परिवारों के लिए उनके ही गाँव की सरकारी चरनोई जमीन में से खेती के लिए जमीन के पट्टे बाँटे थे। प्रदेश के 344329 अजा अजजा परिवारों को 698576 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी लेकिन 13 साल बीत जाने के बाद भी अब तक इनमें से 70 प्रतिशत लोग अपनी जमीन पर काबिज नहीं हो सके हैं।

खुद सरकार ने विधानसभा में यह माना भी है। फरवरी 2013 में तत्कालीन राजस्व मन्त्री करण सिंह वर्मा ने कांग्रेस विधायक के.पी सिंह के प्रश्न के जवाब में बताया कि प्रदेश के कई जिलों में पट्टेधारकों को उनकी जमीन पर काबिज नहीं कराया जा सका है। हालाँकि उन्होंने 60 प्रतिशत का ही आँकड़ा विधानसभा में बताया था लेकिन प्रदेशभर में सर्वे करने वाली संस्था भू-अधिकार अभियान का दावा है कि 70 प्रतिशत परिवार पट्टा–पावती हाथ में लिए इन्तजार कर रहे हैं न जाने कब इनके भाग जागेंगे।

  • संस्था से जुड़े गजराज सिंह बताते हैं कि
  • कुछ लोगों को तो यह तक पता नहीं है कि सरकार ने उनके नाम कोई जमीन की है।
  • कई लोगों को पट्टे तो मिल गए पर उन्हें आज तक कब्जा नहीं मिला।
  • उनकी जमीनों पर आज भी दबंग या प्रभावी लोग ही खेती कर रहे हैं।
  • कुछ को जमीन तो मिल गई पर उनकी जमीन तक जाने का कोई रास्ता ही नहीं दिया गया है। ऐसे में वे खेती नहीं कर पा रहे।
  • कई जगह जंगल की जमीन आवंटित कर दी है, वहाँ वन विभाग पेड़ नहीं काटने दे रहा।
  • किसी को नदी नालों पर ही पट्टे दे दिए।
  • किसी को आधी तो किसी को चौथाई हिस्सा जमीन ही मिल पाई है।
  • सरकारी अमले की निष्क्रियता से पूरी योजना ही मटियामेट हो चुकी है।


सरकार ने जमीन दिए जाने वाले भोपाल घोषणापत्र में स्पष्ट उल्लेख किया था कि इन्हें अपनी जमीन पर काबिज करने का पूरा जिम्मा प्रशासन का होगा और जिला कलेक्टर इसकी मोनिटरिंग करेंगे। बावजूद इसके प्रदेश में कहीं कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही। सबसे ज्यादा बुरी स्थिति छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, उज्जैन, देवास, शाजापुर, नीमच, मंदसौर, विदिशा, सागर और इंदौर जिलों की है।
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