राकेश दुबे@प्रतिदिन। पिछले कई दिनों से मध्यप्रदेश समाचारों में है। व्यापमं की व्याप्तता के बीच कुछ ऐसे आंकड़े सामने आये जो मध्यप्रदेश की सरकार के लिए लज्जा का विषय है। भारत सरकार के अधिकृत आंकड़े कहते हैं कि मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाके में 44.19 प्रतिशत आबादी अशिक्षितों की है। एक दूसरे पर कीचड़ उछालते नेताओं का ध्यान इस ओर नहीं है। यदि सब शिक्षित हो गये होते तो व्यापमं कैसे होता। ख़ैर, देश में सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना 2011 के आंकड़ों ने ग्रामीण परिवारों की बदतर शैक्षिक और आर्थिक स्थिति की तस्वीर पेश की है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली देश की एक-तिहाई आबादी आजादी के 68 साल बाद भी निरक्षर है। जनगणना के मुताबिक, देश की लगभग 65 प्रतिशत ग्रामीण आबादी साक्षर है। जबकि 35 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण आबादी अनपढ़ है।
राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो यहां 13.45 प्रतिशत लोग अनपढ़ हैं जबकि 9.62 प्रतिशत लोग स्नातक या उससे ज्यादा पढ़े-लिखे हैं इनमे दिल्ली के मंत्री तोमर और स्मृति ईरानी भी हैं। वहीं मिजोरम के गांवों में सबसे कम स्नातक या उससे ज्यादा पढ़े-लिखे लोग हैं। निरक्षर राज्य की सूची में राजस्थान सबसे आगे है। यहां अनपढ़ लोगों का आंकड़ा 47.58 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश की 44.19 प्रतिशत ग्रामीण आबादी अशिक्षित है। इस सूची में बिहार तीसरे स्थान पर है। नवगठित राज्य तेलंगाना के ग्रामीण क्षेत्रों के 40.42 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं। जबकि लक्षद्वीप के गांवों में सबसे कम अनपढ़ हैं।
सबसे अधिक साक्षर राज्य केरल में सिर्फ 11.38 प्रतिशत ग्रामीण आबादी निरक्षर है। गोवा की 15.42 प्रतिशत और सिक्किम की 20.12 प्रतिशत ग्रामीण आबादी पढ़ी-लिखी नहीं है। हिमाचल प्रदेश ने अपनी साक्षरता दर सुधारने के लिए काफी अच्छा काम किया है। यहां की केवल 20.25 प्रतिशत ग्रामीण आबादी अनपढ़ है। अगर देश भर में स्नातक या उससे अधिक शिक्षा पाने वाली ग्रामीण आबादी के आंकड़े पर नजर डाली जाए तो यह केवल 3.45 प्रतिशत ही है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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