एक खत व्यापमं की बिल्डिंग के नाम

प्यारी व्यापमं की बिल्डिंग,
तुम तो बहुत ही घुन्नी निकलीं... बचपन से लेकर आधी जवानी तक कभी पापा के स्कूटर पर पीछे बैठकर और बाद में अपनी स्कूटी चलाते हुए पता नहीं कितनी बार मैं तुम्हारे सामने से गुज़री हूं। लेकिन सच बताऊं तो मैंने कभी भी तुम्हें भाव नहीं दिया। आज मेरी हालत गांव की उस लड़की जैसी हो गई है, जिसने कभी नहीं सोचा था कि उसके मोहल्ले का वह 'लल्लू' लड़का, जिसकी तरफ वह देखना भी ज़रूरी नहीं समझती थी, एक दिन स्टार बन जाएगा।

तुम तो मेरे और मेरे दोस्तों के लिए अक्सर लैंडमार्क ही बनकर रहीं, लेकिन मुझे क्या पता था कि तुम तो बेंचमार्क सेट कर दोगी। और हां, वह गुप्ता आंटी की लड़की, जो तुम्हारे यहां रोज़ काम करने आती थी, उसको भी मैं कहां सीरियसली लेती थी...? वैसे उसने एक बार बताया था कि वह व्यापमं में आने वाले परीक्षा फॉर्मों की स्क्रूटिनी करती है। उसने यह भी बताया था कि वहां न के बराबर पढ़ाई किए लड़के-लड़कियां भी फॉर्म चेक करने का काम करते हैं। अब बेचारे मेडिकल और इंजीनियरिंग की परीक्षा देने वाले को कहां पता होगा कि उनका फॉर्म किसी आठवीं पास ने रिजेक्ट कर दिया।

वैसे, आज तुम्हारे बारे में मेरी दीदी से भी बात हो रही थी। उसने सिर्फ एक बार पीईटी (प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट) की परीक्षा दी थी, जिसमें वह एक या दो नहीं, कई नंबर से पीछे रह गई थी। तुम्हारे बारे में यह ख़बर पढ़कर उसने पहली फुरसत में "मैं-न-कहती-थी...?" की धुन में अपने पास न होने का दोष इस घोटाले पर मढ़ दिया, लेकिन मैं अच्छे-से जानती हूं कि मेरी दीदी ने पढ़ाई के नाम पर सिर्फ ढोंग किया है, इसलिए चिंता मत करो, उसके मामले में तुम मेरी तरफ से बरी हो।

लेकिन हां, मेरी एक और सहेली भी थी, जिसने अपनी ज़िन्दगी के पांच-छह साल सिर्फ मेडिकल की परीक्षा देने में बिता दिए। इतने साल तक कॉलेज से ड्रॉप लेकर वह सिर्फ डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा करने में जुटी रही। दिन-रात एक करने के बावजूद जब उसका मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में चयन नहीं हुआ तो उसने खुद को जैसे-तैसे समझा लिया। ऐसा बिल्कुल हो सकता है कि उसकी मेहनत में कुछ कमी रह गई हो, लेकिन सोच रही हूं, तुम्हारी ख़बर सुनकर उसके जैसे कई लोग एक बार के लिए ही सही, फ्लैशबैक में ज़रूर गए होंगे।

बहुत टाइम तक तो मैंने यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि आखिर यह व्यापमं है क्या बला...? यह भी नहीं पता था कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल के प्यार का नाम ही व्यापमं है। वैसे व्यावसायिक परीक्षाओं से मेरा वास्ता कभी नहीं रहा, लेकिन गणित और साइंस के दोस्तों को अक्सर कहते सुनती थी, "भाई... अगर व्यापमं में कुछ 'जुगाड़' है तो कुछ बात बन सकती है..." कभी नहीं सोचा था कि उस जुगाड़ के नीचे तुमने इतना कुछ गाड़कर रखा हुआ है। बाकी जगहों की तरह भोपाल में भी जुगाड़ के ये काम ही छुटभैये नेताओं के लिए ट्रेनिंग ग्राउंड होते थे।

ख़ैर, जिस गली जाना नहीं, उसका पता क्या पूछना, इसलिए मैंने भी व्यापमं के अते-पते कभी नहीं रखे, लेकिन उसके सामने जो चिनार पार्क था, उसके बारे में काफी पता रहता था। जैसे वहां कूड़े-कचरे का इस्तेमाल करके कुछ कलाकृतियां बनाई गई थीं, जिनकी आड़ में जोड़े प्यार का कचरा करने पर तुले रहते थे लेकिन व्यापमं, असल कचरा तो तुम्हारे भीतर ही हो रहा था। उन बच्चों के सपनों का कचरा, जो बिना किसी जुगाड़ या कनेक्शन के डॉक्टरी की परीक्षा देने की जुर्रत कर बैठे थे।

चलो, अब इतने बड़े तूफान के बाद तुम भी काफी बदल जाओगी। पहली फुर्सत में थोड़ा रंग-रोगन करवा लेना, क्योंकि अब तुम सिर्फ लैंडमार्क नहीं रहीं। अब तो ज़र्दा मुंह में दबाए ऑटोवाले स्टेशन या एयरपोर्ट की अपनी सवारियों को दिखाया करेंगे, "यह देखिए मैडम, यहीं हुआ था व्यापमं घोटाला..."

मुबारक हो व्यापमं की बिल्डिंग... तुम तो फेमस हो गईं...

कल्पना
NDTV India

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