टाइगर मेमन को क्यों नहीं धिक्काते ?

उपदेश अवस्थी @लावारिस शहर। पका दिया याकूब मेमन के मामले ने। याकूब की फांसी ना हुई भारत के लोकतंत्र की परीक्षा हो गई। बार बार याचिकाएं लगाईं, आखरी के बाद भी आखरी कोशिश की। रात भर सुप्रीम कोर्ट जागती रही और उसके बाद भी कुछ लोग उबल उबल पड़े हो रहे हैं। मैं कट्टर हिन्दूवादी नहीं हूं, लेकिन उन तमाम लोगों, जो याकूब को निर्दोष और सरकार को हत्यारी बता रहे हैं, से सिर्फ एक सवाल। अपने प्रिय बंधू टाइगर मैमन को क्यों नहीं धिक्कारते।

वो तो याकूब का सगा भाई है। उसे मालूम है कि गुनाह उसने किया है। दुनिया को मालूम है कि गुनाह उसने किया है, फिर क्यों वो सामने नहीं आया। क्यों उसने स्वीकार नहीं किया कि गुनाह उसका है, मेरे भाई को सजा मत दीजिए। क्यों उसने सरेंडर नहीं किया। जिस याकूब का अपना भाई सगा नहीं हुआ, उस याकूब के लिए क्या उम्मीद कीजिए कि कोई दूसरा सगा हो सकता था। वो बुजदिल आज भी चुपचाप कहीं छिपकर बैठा है। डी कंपनी का एक गुर्गा आया और भारत को धमकी देकर चला गया। उसे मालूम है कि वो सिर्फ किसी अंग्रेजी अखबार के दफ्तर में ही फोन पर धमकी दे सकता है। किसी संवेदनशील मीडिया घराने को फोन कर दिया होता तो अब तक उठा लिया गया होता या एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया होता।

याकूब के समर्थन और विरोध में आए तमाम बयान मुझे साम्प्रदायिक लगते हैं। सिर्फ शशि थरूर से सहमत हूं कि लोकतंत्र में एक व्यक्ति को फांसी देने का अर्थ है, एक गुनहगार को सुधारने के प्रयासों से हार मान लेना। बहुत कम लोग समझेंगे कि भारत जैसे विशाल हृदय वाले देश में किसी भी व्यक्ति को दी गई सजा-ए-मौत सरकार की जीत नहीं हार है। ऐसी हार जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। जिस देश में जेलों को सुधार गृह कहा जाता है। जहां सजा नहीं सुधार लक्ष्य होता है। वहां सजा-ए-मौत सरकार की हार ही कही जानी चाहिए।

बड़ी अजीब बात है। पूरे एपिसोड में किसी ने भी टाइगर मेमन का जिक्र नहीं किया। याकूब के घरवाले न्यायालयों में याचिकाएं लगाते रहे, यहां माफी, वहां पिटीशन डालते रहे, लेकिन एक बार भी टाइगर मेमन के सामने गुहार नहीं लगाई, कि आओ और अपने गुनाह के लिए अपने भाई को सजा-ए-मौत तक जाने से रोक लो। मैं समझता हूं कि याकूब की मौत का यदि कोई जिम्मेदार है तो वो टाइगर मेमन ही है। वो अपने परिवार का गुनहगार है। अपने भाई का हत्यारा है। अपनी जान बचाने के लिए उसने अपने निर्दोष भाई को मर जाने दिया। उसे माफ नहीं किया जाना चाहिए।

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