हबीब सिद्दीकी। 1 जगह भारत मैं रहने वाला मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ की हिमायत करता है दूसरी तरफ जहाँ हमारा यानी भारत का क़ानून अगर किसी को इस्लामी क़ानून से मिलती जुलती सजा सुना दे तो बहस मुवाहिसै जारी हो जाते हैं। कई वो लोग जो अपने आप को मुस्लिमों का हिमायती कहलाकर उन की राजनितिक रोटियां सेकने से बाज़ नहीं आते.... आखिर वो चाहते क्या हैं क़ानून को खिलौना बना के रख दिया है जिसे देखो बेतुके बयान जारी किये जा रहा है। जबकि इस्लाम ने साफ़ कर दिया हैं की हक़ बात का साथ दो तो फिर ऐसा क्यों.....?
मुम्बई ब्लास्ट के आरोपी की सजा पर इतनी बहस क्यों
है कोई जवाब उन लोगों के पास जो सज़ा को रुकवाना चाहते हैं
1_क्या मुम्बई ब्लास्ट मैं मरने वाले सिर्फ हिन्दू थे मुसलमान नहीं
अगर हाँ तो फिर क़त्ले आम करना किस मज़हबी किताब मैं लिखा है की किसी निर्दोष का क़त्ल ए आम किया जाय...?
2_इस्लाम की किस किताब यहाँ तक मुक़द्दस क़ुरआन मैं कहीं इसका ज़िक्र है क्या....?
3_क्या जुर्म करने वाले या उनके परिवार को इस कृत्य पर शर्मिंदगी हुई......?
4_ क्या याक़ूब मेमन ने कभी हताहत हुए लोगों के परिवार से माफ़ी मांगी ....?
5_अगर याक़ूब निर्दोष है तो फांसी की सजा को उम्रकैद मैं बदलने की अपील क्यों...?
6_अगर यही काम किसी उस मुल्क मैं जहाँ इस्लामी क़ानून लागू है में होता तो वहां ऐसा बवाल मचता....? नहीं न तो भारत मैं ?
7_अगर यही कृत्य किसी इस्लामी क़ानून वाले मुल्क मैं होता तो क़बर की मिटटी पर भी घास उग चुकी होती।
8_ मैं ये नहीं कहता की और अपराधी चाहे वो किसी भी धर्म से वास्ता रखते हो उन को भी जिन्होंने देश मै दहशत गर्दी मचाई हो माफ़ कर दिया जाय या उनकी सजा मै देरी हो पर सज़ा सबको मिलनी चाहिये माफ़ी किसी को नहीं मिलना चाहिये क्योंकि जब तक क़ानून का डर नहीं होगा दहशत गर्द देश मैं ऐसे घिनोने कृत्य करते रहेंगे।
1 बात और बता दूँ उन ओछी राजनीति करनै वालों को जिनको शायद मालूम न हो आज़ादी के बाद लगभग 700 लोगों को फाँसी की सज़ा हुई जिनमे 4% मुस्लिम हैं बाक़ी लगभग 96% नॉन मुस्लिम...और इनकी ज़द मैं आने वाले लोग इन्साफ की और टकटकी लगाय देखता रहेगा
....हादसों मैं किसी की भी जान जाय या वो माज़ूर हो हैं तो सब उस रब की औलाद ही न
फिर सज़ा मैं दोहरा माप दंड क्यों आखिर क्यों.......
है कोई जवाब