राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय राजनीति कहाँ जा रही है? एनडी के सांसद कांग्रेस मुख्यमंत्रियों के खिलाफ धरने पर हैं और सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे ‘ललितगेट’ में फंसी हैं, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के विरुद्ध उनकी डिग्री का मामला अदालत में चल रहा है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व्यापमं घोटाले में धंसते जा रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पंकजा मुंडे पर करोड़ों रुपए के ठेकों में हेराफेरी का आरोप है। कांग्रेस इन मंत्रियों के इस्तीफे मांग रही है| इस सबके चलते संसद ठप्प है|
हर दिन गुजरने के साथ भाजपा सरकारों से जुड़े विवादों की आग भड़कती जा रही है। विवश होकर भगवा दल ने नैतिक आचरण का चोला उतार कर फेंक दिया है। उसके प्रवक्ता साफ-साफ कह रहे हैं कि केवल नैतिकता के आधार पर कोई नेता इस्तीफा नहीं देगा। उन्हें गलतफहमी है कि अगर सरकार ने पांच साल अच्छा काम किया, तब लोग काम देख कर ही वोट देंगे। बेईमानी और अनैतिक आचरण को भुला दिया जाएगा।
विदेशमंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को ललित मोदी कांड में घिरे अरसा बीत चुका है, फिर भी प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर मौन धारण कर रखा है। छोटी-छोटी बात पर ट्वीट करने वाले नरेंद्र मोदी की खामोशी जनता को चुभने लगी है। ताजा ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी उन्होंने अपनी पार्टी और सरकार से जुड़े तमाम विवादास्पद मुद्दों का जिक्र तक नहीं किया।
जब तक न्यायालय प्रमाण की पुष्टि न कर दे, तब तक किसी को अपराधी नहीं माना जा सकता। इसी तर्क का सहारा लेकर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की भाजपा में वापसी हुई थी और इसी तर्क की आड़ में अब सुषमा, राजे और अन्य मंत्रियों का बचाव किया जा रहा है।
लगभग एक बरस पहले जब भाजपा विपक्ष में थी तब राष्ट्रमंडल खेल, 2-जी और कोयला घोटाले में आरोप सामने आते ही उसके नेता कांग्रेस के मंत्रियों के इस्तीफे के लिए आसमान सिर पर उठा लेते थे और जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती थी, संसद ठप कर देते थे, वही अब हो रहा है।
अब पुराने तर्क भुला दिए गए हैं। वही लचर दलील दी जा रही है, जो कभी कांग्रेस के नेता देते थे। जन-प्रतिनिधियों से जनता नैतिक आचरण की अपेक्षा रखती है। आज भी लोगों को याद है कि इसी देश में एक रेल दुर्घटना होने पर लालबहादुर शास्त्री ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। अब किसी आरोपी या अपराधी की सहायता करने और उससे पैसों का लेन-देन करने का पक्का सबूत मिल जाने पर भी हमारे नेता कुर्सी से चिपके रहते हैं। जमाना बदल गया है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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