भोपाल। नगरनिगम ने भोपाल शहर की पार्किंग व्यवस्था का निजीकरण करने के लिए अपना ही सिस्टम फैल किया, खुद जांच की ओर खुद ही रिपोर्ट तैयार कर पार्किंग सिस्टम को प्राइवेट कंपनी को सौंपने की तैयारी कर डाली। सवाल यह है कि जो काम प्राइवेट कंपनी कर सकती है, वो नगरनिगम क्यों नहीं कर सकता और यदि नगरनिगम यह मानता है कि वो गुणवत्ता युक्त सेवाएं देने में सक्षम नहीं है तो सबसे पहले नगरनिगम ही भंग कर दिया जाना चाहिए। महापौर की कुर्सी पर प्राइवेट कंपनी का डायरेक्टर व कमिश्नर की कुर्सी पर प्राइवेट कंपनी का सीईओ ज्यादा उचित होगा।
महापौर आलोक शर्मा ने हाल ही में सुविधाओं में कमी के नाम पर पार्किंग के टेंडर रद्द कर दिए थे। इसके बाद उन्होंने एक कमेटी बनाई और कमेटी ने सिफारिश की। कुल मिलाकर अपनी बिफलता पर शर्म करने और उसे सुधारने के बजाए सिस्टम को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली गई है।
मनमाना शुल्क तय करेगी कंपनी
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत न्यू मार्केट विजय स्तंभ और डीबी सिटी के सामने एमपी नगर में पार्किंग को पायलट प्रोजेक्ट में लिया जाएगा। यहां निजी कंपनी खुद ही पार्किंग में सुविधाओं का विस्तार करेगी। होने वाली आमदनी पर निगम को हर माह रॉयल्टी देगी।
अभी यह है व्यवस्था
अभी 52 स्थानों पर नगर निगम की पेड पार्किंग है। इससे निगम को सालाना 52 लाख रुपए की आय होती है। निगम इन्हें सालाना की तय राशि पर ठेके पर देता है, लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों में पार्किंग ठेकेदारों को घाटा होने की वजह से उन्होंने ठेका लेना कम कर दिया। इस वजह से 42 स्थानों पर निगम के अस्थाई कर्मचारी ही पार्किंग शुल्क की वसूली करते हैं। इससे सालाना राजस्व घटकर 25 लाख रुपए तक सिमट गया है। निगम अपने ही भ्रष्टाचार को रोकने में नाकाम है।