जबलपुर। नियमों को कैसे दरकिनार किया जाता है। इसकी बानगी स्कूल शिक्षा विभाग में देखी जा सकती है। विभाग में पहली से आठवीं कक्षा तक संचालित हो रहे 791 निजी स्कूल रजिस्टर्ड हैं, लेकिन इनमें से 662 स्कूलों ने ही जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से मान्यता ली है। 129 स्कूल बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के मापदंडों को पूरा नहीं कर रहे हैं। इसके बाद भी ऐसे स्कूलों को बंद करने की बजाए शिक्षा विभाग की कार्रवाई सिर्फ नोटिस तक ही सिमट कर रह गई है।
मापदंड अधूरे, पर फीस ले रहे पूरी
ये स्कूल मानक भले पूरे नहीं कर रहे, लेकिन अभिभावकों से मंथली फीस के साथ ही सुविधा शुल्क और खेल के नाम पर मनचाही फीस वसूल रहे हैं। जिन स्कूलों को डीईओ कार्यालय से मान्यता नहीं दी गई है उन स्कूलों को मानक पूरे कराने के तरीके बताए जा रहे हैं।
ये हैं मानक
स्कूल,संस्था के पास स्वयं का या किराए का भवन हो।
प्रति छात्र के हिसाब से 5 से 8 वर्गफीट खुली भूमि यानी खेल के लिए पर्याप्त स्पेस हो।
स्कूल में छात्र संख्या के हिसाब से विषयवार शिक्षक, स्टाफ हो।
शिक्षक बीएड, डीएड की योग्यता रखते हो।
विकलांगों के लिए रैम्प व अन्य व्यवस्थाएं जरूरी।
फर्नीचर, छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग प्रसाधन, पेयजल और विद्युत व्यवस्था अनिवार्य।
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ऐसे हो रहा खेल
मानक पूरे न करने पर मान्यता संबंधी आवेदन रोक लिए जाते हैं।
स्कूल संचालकों को मानक पूरे करने दिया जाता है नोटिस।
मैदान के नाम पर स्कूल के पास के मैदान पर दी जा रही मान्यता।
रैंप, टॉयलेट निर्माण शो करने दूसरे स्कूलों की लगवा देते हैं फोटो।
स्कूलों में आधा कोर्स पढ़ाए जाने के बाद मान्यता देना बताते है मजबूरी।
बच्चों की पढ़ाई और भविष्य का दिया जाता है हवाला।
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न स्कूल बंद हुए, न मान्यता रद्द हुई
तीन सालों में मानक पूरे न करने वाले एक भी स्कूल बंद नहीं हुए।
गरीब बच्चों को 25 प्रतिशत एडमिशन न देने वाले स्कूलों को भी नोटिस देने तक सिमटी कार्रवाई।
एडमिशन न देने वाले महर्षि, लिटिल वर्ल्ड, नर्मदा नर्सरी जैसे स्कूलों को जारी हुए सिर्फ मान्यता रद्द के नोटिस।
विभाग के निर्देश न मानने वाले स्कूलों 74 स्कूलों को जून-जुलाई माह में दिए गए नोटिस।