राकेश दुबे@प्रतिदिन। तीन बार भारत सरकार से कृषि कर्मण पुरस्कार जितने वाले मध्यप्रदेश के पीछे की कहानी यह है कि 2005-2014 के बीच कुल कृषि रकबा 19711 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 23233 हजार हेक्टेयर हो गया| सिंचित क्षेत्रफल भी 5878 हजार से बढ़कर 8965 हजार हेक्टेयर हो गया| इससे खाद्यान्न उत्पादन तो बढ़ना ही था, जो 143.31 लाख टन से बढ़कर 276 लाख टन पर पहुंच गया| प्रदेश में प्रति व्यक्ति 380 किलो अनाज पैदा करता है| हालांकि, प्रति व्यक्ति अनाज की खपत 141 किलो (ग्रामीण) और किलो (शहरी) है| राशन प्रणाली को छोड़कर बच्चों और महिलाओं के पोषण हकों को विकास की कालीन के नीचे छिपा दिया गया है।
भारत में एनएसएसओ की पौष्टिक अंतर्ग्रहण (अक्टूबर 2014 में जारी) रिपोर्ट से पता चलता है कि मध्य प्रदेश के गांवों में 1972-73 के दौरान प्रति व्यक्ति उपभोग 2423 कैलोरी था, जो 2011-12 में घटकर 2110 कैलोरी रह गया, जबकि शहरों में यह 2229 कैलोरी से घटकर 2029 कैलोरी हो गया| गांवों में प्रोटीन अंतर्ग्रहण 68 ग्राम से घटकर 61.8 ग्राम और शहरों में 61 से 58 ग्राम हो गया| मध्य प्रदेश (ग्रामीण) में प्रति व्यक्ति अनाज की दैनिक खपत 384 ग्राम है| हर व्यक्ति के हिस्से में 28 ग्राम दाल रोज आती है| 171 ग्राम सब्जी, 24 ग्राम फल, 1.7 ग्राम सूखे मेवे, 13.5 ग्राम मसाले भी रोज के खाने में शामिल हैं|
दूध की प्रति व्यक्ति खपत 135 मिलीलीटर है| एनएसएसओ के मुताबिक, औसतन एक व्यक्ति के भोजन पर रोज का खर्च 24.32 रुपये आता है| मध्यप्रदेश के शहरों में अनाज का उपभोग और कम हुआ है. यहां हर व्यक्ति की थाली में रोजाना 339 ग्राम अनाज आता है| दाल का उपभोग 31 ग्राम प्रतिदिन है. शहरी क्षेत्रों में भोजन पर रोजाना का खर्च लगभग 29 रुपये है| साफ है कि उत्पादन की बढ़ोतरी का असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ता नहीं दिख रहा है|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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