महेंद्र सिंह/नई दिल्ली। भारतीय रेलवे बड़े बदलावों की ओर अग्रसर है। रेलवे की कायाकल्प करने के लिए सलाह देने के लिए गठित एक सरकारी पैनल ने पैसेंजर ट्रेनों को चलाने के लिए प्राइवेट कंपनियों के प्रवेश की सिफारिश की है। इससे पहले मालगाड़ियों के लिए प्राइवेट सेक्टर की भूमिका पर बात होती रही है लेकिन यह पहली बार है जब उन्हें पैसेंजर ट्रेनों को चलाने की अनुमति देने पर चर्चा की जा रही है।
इसके साथ ही नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता वाले इस पैनल ने रेलवे के ऑपरेश और मेंटेंनेस के लिए प्राइवटे कंपनियों को लाए जाने की सिफारिश की है और साथ ही रेलवे के जीर्णोद्धार के लिए बाहर से टैलेंटेड लोगों को लाने की भी सिफारिश की गई है।
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा गठित किया गया देबरॉय पैनल ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर ली है और शुक्रवार को इसे सरकार के सामने पेश किया जाएगा। रेलवे के मोदी सरकार के प्राथमिकताओं वाले सेक्टरों में शामिल होने से उम्मीद है कि सरकार आने वाले महीनों में इन सिफारिशों पर अमल करेगी।
पैनल ने साथ ही अलग से रेल बजट को समाप्त किए जाने की भी सिफारिश की है, जिसके बारे में अतीत में भी कई इकॉनमिस्ट कह चुके हैं, क्योंकि रेलवे सिर्फ एक पब्लिक सेक्टर की कंपनी है। रेलवे बजट को ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत के तौर पर देखा जाता है।
जो प्रमुख सिफारिशें की गई हैं, उनमें रेलवे फंक्शंस के कमर्शल अकाउंटिग की तरफ मुड़ना, रेलवे प्रॉडक्शन यूनिट्स का कॉर्पोरेटाइजेशन और कोच, वैगन्स और लोकोमोटिव्स के निर्माण में प्राइवेट सेक्टर को शामिल करना शामिल है।
देबरॉय कमिटी ने रेलवे की अलाभकारी गतिविधियों, जैसे, स्कूल, हॉस्पिटल, कैटरिंग, रियल एस्टेट और इसके विशाल सिक्यॉरिटी सेटअप, आरपीएफ को इसके कोर बिजनस से अलग किए जाने के विचार का समर्थन किया है। रेलवे देश भर में कुछ सबसे बड़े स्कूल और हॉस्पिटल चलाता है।
रेलवे के ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर पर टिप्पणी करते हुए कमिटी ने कहा है कि रेलवे बहुत ही केंद्रीकृत और वर्गीकृत संगठन बन गया है। पैनल ने बाहरी टैलंट को आकर्षित करने के लिए इसके कुछ स्टाफिंग नियमों में बदलाव करने पर जोर दिया है, जिससे इसकी क्षमता में बढ़ोतरी हो सके।
कमिटी ने जोर देकर कहा कि वह रेलवे की हिस्सेदारी बेचने के संदर्भ में निजीकरण की बात नहीं कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, 'कमिटी ने रेलवे के निजीकरण की सिफारिश नहीं की है।' हालांकि वह प्राइवेट सेक्टर के प्रवेश की सिफारिश करती है क्योंकि इसे भारतीय रेलवे की पॉलिसी के तहत स्वीकार किया गया है।
पैनल ने कहा कि पोर्ट्स, टेलिकॉम, एयरपोर्ट्स और सड़कों जैसे सेक्टरों से तुलना करने पर पता चलता है कि रेलवे में प्राइवेट सेक्टर का प्रवेश नहीं हो पाया है। इसके प्रमुख कारणों में से एक यह है कि एक ही संगठन ही तीन प्रमुख कार्यों पॉलिसी मेकिंग, रेग्युलेटरी फंक्शंस और ऑपरेशंस को निपटाता है।
कमिटी ने रेलवे मंत्रालय से स्वतंत्र और अलग बजट के साथ रेलवे रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (RRAI) के गठन की सिफारिश की है। प्राइवेट कंपनियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए रेग्युले्टर के पास वैधानिक समर्थन के साथ अर्ध-न्यायिक शक्तियां होनी चाहिए।