क्या मीडिया सच न कहे ?

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार को जला कर मार डालने और एक पर गोली चलाने की घटना के पक्ष में सिर्फ एक बात सामने आती है कि यदि आप मीडिया में हैं स्वतंत्र रूप से कुछ कहना करना चाहते हैं, तो आपके प्रति सहानुभूति किसी को नहीं है क्योकि जाल में फिट नहीं है जो सच को सच की तरह दिखाने से परहेज ही नहीं बरतता बल्कि उस पर एक छद्म आवरण भी डालकर रखता है।

कई पत्र-पत्रिकाओं में काम कर चुके जागेंद्र सिंह का कसूर इतना था कि उन्होंने एक कद्दावर नेता की आपराधिक गतिविधियों का खुलासा सोशल मीडिया के जरिए किया। इसकी प्रतिक्रिया में उन पर कई फर्जी मुकदमे थोप दिए गए, तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया। खबरों के मुताबिक उन पर दबाव बनाने उनके घर गए पुलिसकर्मियों ने पहले उनके साथ मारपीट की, फिर पेट्रोल डाल कर जिंदा जला दिया। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा पर अवैध खनन, जमीन पर कब्जा करने और बलात्कार जैसेकई आरोप हैं।

जागेंद्र सिंह ने इन मामलों में मंत्री की भूमिका और इसका सबूत होने की बात अपने ब्लॉग और फेसबुक पन्ने पर लिखी थी। बड़े प्रकशनो की सरकार के साथ चलती जुगलबंदी से कोई भी अपरिचित नहीं है | आज की पत्रकारिता में भी गिरावट देखी जा सकती है, हिम्मत और ईमानदारी के साथ पत्रकारिता करने वाले लोग कम हैं। पर आज सूचना क्रांति के दौर में जिन कुछ जरूरी खबरों को कई वजहों से मुख्यधारा मीडिया में जगह नहीं मिल पाती, वे सोशल मीडिया के जरिए तुरंत आम लोगों तक पहुंच जाती हैं। ऐसे में जागेंद्र सिंह ने अपने वैकल्पिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए एक मंत्री पर लगे आरोपों से संबंधित तथ्य उजागर किए।

पिछले कुछ सालों के दौरान पाकिस्तान को पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा जोखिम भरे देश के रूप में जाना जाने लगा है।हाल के दिनों में इराक में आइएसआइएस ने भी कई पत्रकारों को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया कि वे ईमानदारी से अपना काम कर रहे थे। सवाल है कि एक मंत्री के भ्रष्ट कारनामों का खुलासा करने पर जिस तरह जागेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई, क्या भारत भी पत्रकारिता पर जोखिम की उसी दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है?

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि एक पत्रकार अगर ईमानदारी से अपने पेशे का निर्वाह करता है तो एक तरह से वह समूचे समाज के हित में काम कर रहा होता है। इसलिए पत्रकारिता की ऐसी आवाजों पर हमला या उन्हें खामोश करने की कोशिश किसी एक व्यक्ति के नहीं, बल्कि इंसानियत, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के खिलाफ है। भारत में भी ऐसा माहौल बन रहा है कि मीडिया सच न कहे।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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