मध्यप्रदेश: एक बच्चे के पोषण पर मात्र 3 रूपये

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत सरकार के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे वर्ष 2013 के अनुसार, मध्य प्रदेश में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर पांच साल से कम उम्र के 69 बच्चों की मृत्यु होती है. इस परिभाषा के अनुसार, 2013 में जीवित पैदा हुए 19 लाख बच्चों में से 1.383 लाख बच्चे पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले ही दुनिया छोड़ गए|

इसका सीधा संबंध कुपोषण के ऊंचे स्तर से है. कुपोषित बच्चों के डायरिया, निमोनिया, खसरा और मलेरिया से मरने की आशंका 19 गुना तक बढ़ जाती है. अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य शोध पत्रिका ‘के मानकों पर सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे 2013 में बताई गई मृत्यु दर के आधार पर आकलन करें तो मध्य प्रदेश में निमोनिया से 34382 और डायरिया से 27696 बच्चों की मौत हुई| इस स्थिति में एक ऐसी नीति की जरूरत है, जो कुपोषण से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित करे, अलग-अलग समुदायों में भोजन के व्यवहार को संरक्षित और प्रोत्साहित करे
जिसमें सांस्कृतिक भेदभाव न हो, पोषण आहार कालाबाजारियों के हवाले न रहे और कुपोषण से लड़ाई में समाज को मुख्य भूमिका में रखा जाए।

मध्य प्रदेश में ऐसा कुछ तो नहीं किया गया, केवल बाल पोषण कार्यक्रम के लिए 2010 से 2014-15 के दौरान 5130.56 करोड़ रुपये खर्च किए गए| जो 1.07 करोड़ बच्चों के पोषण पर खर्च 3 रुपये प्रतिदिन से ज्यादा नहीं बढ़ा|

‘बीमारू’ राज्य की छवि को बदलने के लिए राज्य सरकार ने विजया राजे सिंधिया बीमा योजना शुरू की. नवजात शिशु उपचार इकाइयां भी बनाईं. गंभीर कुपोषित बच्चों के इलाज की व्यवस्था, यानी पोषण पुनर्वास केंद्रों का ढांचा खड़ा हुआ| बाद में ऐसी योजनाएं कब बंद हो जाती हैं किसी को खबर तक नहीं लगती है.

मुफ्त दवा योजना के तहत घटिया क्वालिटी की दवाएं बांटी जाती हैं. डाॅक्टरों के आधे पद खाली पड़े हैं; क्यों?  न तो यह सवाल पूछा जाता है, न जवाब देने के लिए कोई उत्तरदायी है।  स्वास्थ्य, पोषण, कृषि जैसे क्षेत्रों में नवाचारी पहल के लिए मध्य प्रदेश बीते एक दशक में देश का सबसे अग्रणी राज्य रहा है, लेकिन इसमें दृष्टि और निरंतरता का अभाव साफ झलकता है. शायद यही वजह है कि कई योजनाएं आगे बढ़ने से पहले ही दम तोड़ गईं|

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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