भोपाल। किडनी या लिवर या मानव अंगों का काला कारोबार कितना बड़ा है किसी को बताने की जरूरत नहीं लेकिन यह संगीन अपराध की श्रेणी में आता है और डॉक्टरों को इसके लिए जेल भी जाना पड़ता था, परंतु अब ऐसा नहीं होगा। ह्यूमन ऑर्गन ट्रांसप्लांट एक्ट में संशोधन हो गया है। अब दोस्ती के नाम पर भी किडनी डोनेट की जा सकेगी। लव्वोलुआब यह कि ना तो किडनी बेचने वाला गिरफ्तार होगा और ना ही डॉक्टर।
ह्यूमन ऑर्गन ट्रांसप्लांट एक्ट 1994 के मुताबिक किडनी बेचना गैर जमानती अपराध है। इसे एक इंसान दूसरे इंसान को इंसानियत के नाते डोनेट भी नहीं कर सकता। एक्ट के अनुसार किडनी सिर्फ ब्लड रिलेशन में ही सिर्फ डोनेट की जा सकती है। इसे पेशेंट के माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी और पति या पत्नी ही डोनेट कर सकते हैं। 2011 में एक्ट में संशोधन के बाद अब दादा-दादी, नाना-नानी, नाती-नातिन और पोता-पोती भी किडनी डोनेट कर सकते हैं।
अब एक नया संशोधन जुड़ा है, लिविंग डोनर्स की लिस्ट में दोस्तों को भी शामिल कर लिया है। अब किडनी या लिवर के सही मैच होने पर ह्यूमन आॅर्गन ट्रांसप्लांट अॉथोराइजेशन कमेटी दोस्तों को भी अंगदान करने की अनुमति दे देगी।
डॉक्टर बिरादरी खुश
नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. दिनेश उपाध्याय ने बताया कि राजधानी में हर साल किडनी खराब होने वाले औसतन 4 हजार मरीज आते हैं। बमुश्किल 50 मरीज ही ट्रांसप्लांट सर्जरी करा पाते हैं। गेस्ट्रोकेयर हॉस्पिटल के डायरेक्टर एवं लिवर रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय कुमार बताते हैं कि भोपाल से हर साल 450 मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए दूसरे शहर रैफर किया जाता है, लेकिन इनमें भी सिर्फ 10 मरीज ही सर्जरी करा पाते हैं, क्योंकि इसका खर्चा 12 लाख से 25 लाख रुपए तक है।
