भाजपा राममंदिर बनाना ही नहीं चाहती: शंकाराचार्य निश्चलानंद

भोपाल। अयोध्या में रामलला के मंदिर पर पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का दो टूक मत है कि राम मंदिर बनाने का वादा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के पास इसके लिए इच्छाशक्ति का अभाव है। अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के समय उसके पास बहाना था कि वह दूसरे दलों के समर्थन पर टिके हैं, लेकिन अब भाजपा कूटनीतिक बयानबाजी कर रही है।

शंकराचार्य ने यह बातें केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान को लेकर कहीं, जिसमें उन्होंने हाल ही में कहा था कि हम राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव अभी इसलिए नहीं ला सकते, क्योंकि राज्य सभा में हमारे पास बहुमत नहीं है।

शंकराचार्य ने यह भी कहा कि कई बड़े राजनैतिक दलों ने अपने-अपने संत भी बना रखे हैं, जिनका उपयोग वह अपने स्वार्थ के लिए करते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी राजनैतिक दल हो, वह हिंदुओं के साथ न्याय नहीं कर रहा है। इसकी वजह यह है कि उनमें इतना मनोबल ही नहीं है। हिंदुओं को अब अपने बारे में स्वयं सोच कर कोई रास्ता निकालना होगा। शंकराचार्य बुधवार को हरिद्व‌ार से दो दिनी प्रवास पर भोपाल आए हैं।

राम सेतु पर भी बोले
उन्होंने बताया कि नरसिंहराव सरकार के समय रामालय ट्रस्ट को अयोध्या में मंदिर व मस्जिद का निर्माण काम सौंपा गया था। कई संतों ने हस्ताक्षर कर दिए पर उन्होंने नहीं किए, जबकि उन्हें कई प्रलोभन दिए गए। शंकराचार्य ने कहा कि संत भी बंटे हुए हैं। कुछ राजनैतिक दलों ने अपने खास लोगों को ही संत बना कर समाज के सामने पेश कर रखा है, जो उनकी हां में हां मिलाते हैं। जो संत सरकार की बातों से सहमत नहीं होते वे उपेक्षित कर दिए जाते हैं।राम सेतु पर उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी बातचीत में माना था कि अंग्रेजों ने कभी राम सेतु को नष्ट करने की कोशिश नहीं की, जबकि कुछ नेताओं ने इसे विखंडित करने का कुचक्र रचा।

शंकराचार्य के तीन सुझाव
शंकराचार्य का कहना है कि राम मंदिर निर्माण का मामला कोर्ट के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। कोर्ट में कई साल से मामला चल रहा है। आगे कितने साल चलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। जबकि तीन सुझाव में से किसी एक पर भी अमल किया जाए तो मंदिर बन सकता है।

पहला- मंदिर निर्माण का प्रस्ताव कांग्रेस लाए और भाजपा व अन्य दल उसका समर्थन करें।
दूसरा-आपसी सद्भाव, समन्वय व संवाद के जरिए राजनैतिक दल इस मसले को हल कर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें।
तीसरा- मुस्लिम समुदाय यह सच्चाई स्वीकार करे कि हिंदुओं से भी ज्यादा उन्हें अधिकार मिले हुए हैं, इसलिए वे स्वयं मंदिर निर्माण के लिए पहल करें।

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