EPFO के नए नियम: कर्मचारियों को क्या फायदा कितना नुकसान

राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) आने और म्युचुअल फंडों के सेवानिवृत्ति फंड आने से कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) की चमक फीकी पड़ सकती है। अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ईपीएफओ ग्राहकों को 'ग्राहक के बजाय बंधक' करार दिया था। उन्होंने कहा था, 'यदि प्रतिशत के आंकड़ों में देखा जाए तो कम वेतन पाने वाले कामगारों को अधिक वेतन पाने वाले कामगारों के मुकाबले अधिक कटौती झेलनी पड़ती है।' 

नवंबर 2014 में ईपीएफओ के सदस्यों की तादाद 4.19 करोड़ थी और वर्ष 2014-15 के लिए ब्याज दर 8.75 फीसदी निर्धारित की गई। ईपीएफओ द्वारा इलेक्ट्रॉनिक चालान-कम-रिटर्न सुविधा शुरू किए जाने से कंपनियां ईपीएफ भुगतान इलेक्ट्रॉनिक रूप से कर सकती हैं। पिछले साल खातों पर नजर रखने के लिहाज से यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (यूएएन) शुरू किया गया। इसी तरह अन्य बदलाव भी किए जाने हैं। देखते हैं कि इनका  ग्राहकों पर किस तरह से असर पड़ेगा।

EPF कटौती का नया सूत्र
फिलहाल ईपीएफ के लिए योगदान की गणना मूल वेतन और महंगाई भत्ते के प्रतिशत के रूप में की जाती है। लेकिन अब अन्य भत्तों को भी इस गणना में शामिल किए जाने का प्रस्ताव है। इनमें आवास किराया भत्ता, परिवहन भत्ता, दवा, भोजन, शिक्षा और फर्निशिंग जैसे खास भत्ते शामिल हैं अर्थात् ईपीएफ में कर्मचारियों और नियोक्ताओं का योगदान बढ़ जाएगा, लेकिन शुद्घ मासिक वेतन में कमी आ जाएगी। लैडर7 फाइनैंशियल एडवाइजर्स के संस्थापक सुरेश सदगोपन कहते हैं, 'इससे कर्मचारी को सेवानिवृति के समय अधिक रकम हासिल करने में मदद मिलेगी। लेकिन हर महीने हाथ में आने वाली रकम घटेगी,  जिससे वर्तमान खर्च पर असर पड़ सकता है और कर्ज के भुगतान में भी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।'

उन छोटी फर्मों को इस तरह की समस्या का सामना संभवत: नहीं करना पड़ेगा, जिनके वेतन पैकेज में भत्तों का हिस्सा बहुत कम है। लेकिन बड़ी कंपनियों के मामले में वेतन में कटौती भी बढ़ेगी और नियोक्ताओं द्वारा होने वाले योगदान में भी इजाफा हो जाएगा। पॉजिटिव वाइब्स कंसल्टिंग ऐंड एडवाइजरी में पार्टनर एवं कंसल्टेंट मल्हार मजूमदार कहते हैं, 'नियोक्ताओं को भी अपनी स्थिति में बदलाव लाने की जरूरत होगी क्योंकि उन्हें पीएफ कोष के लिए बराबर रकम डालनी होगी। इसलिए कर्मचारियों के हाथ में कम नकदी को देखते हुए वेतन के ढांचे को समायोजित करने की जरूरत होगी।' अलबत्ता वैंटेज हेल्थ ऐंड बेनिफिट्स कंसल्टिंग में प्रबंध निदेशक सुदीप मुखोपाध्याय कहते हैं, 'भले ही इन बदलावों के बाद हाथ में आने वाला मासिक वेतन आपके लिए आरंभ में परेशानी का कारण बनेगा, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद आपको इससे ज्यादा फायदा होगा।'

पेंशन में योगदान 60 साल की उम्र तक
सेवानिवृति की उम्र 58 से बढ़ा कर 60 किए जाने के बाद पेंशन में योगदान की उम्र भी 60 साल किए जाने की उम्मीद थी। मजूमदार कहते हैं, '58 से 60 साल तक 2 साल के लिए ईपीएफ के पेंशन कोष में योगदान रुक जाता था, लेकिन भविष्य निधि में पैसा जाता रहता था। ऐसे में दो साल तक कर्मचारी को वेतन भी मिलता था और पेंशन भी। अब यह गड़बड़ दूर हो जाएगी।'

प्रस्ताव की तुक
मूल वेतन एवं भत्ता: मूल वेतन एवं भत्तों के आधार पर भविष्य निधि की गणना किए जाने के बारे में श्रम मंत्रालय को निर्णय लेना है। नियोक्ता इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भी पीएफ में ज्यादा योगदान करना होगा।

पेंशन योगदान में वृद्घि
पेंशन योगदान 58 से बढ़ा कर 60 साल किए जाने का प्रस्ताव उन्हें सक्षम बनाएगा। शुरू में 58 साल की उम्र के बाद पेंशन में योगदान का प्रावधान नहीं था। नई पहल से उपभोक्ताओं को मदद मिलेगी, क्योंकि वे अतिरिक्त योगदान पर ब्याज अर्जित कर सकते हैं।

कुल रकम का 10 प्रतिशत रोक लेना
कुल राशि का 10 प्रतिशत अपने पास तब तक रोकने का प्रस्ताव है जब तक ग्राहक 50 वर्ष का नहीं हो जाता। ईपीएफ का इस्तेमाल बचत खाते की तरह नहीं बल्कि सच्ची सामाजिक सुरक्षा के रूप में किया जाना चाहिए। कई विकसित देशों में नियोक्ता का 30-40 फीसदी योगदान ग्राहक के सेवानिवृत होने से पहले नहीं दिया जाता है।

50 साल की उम्र तक 10 फीसदी रकम रोकना
इस प्रस्ताव का मकसद ग्राहकों को सेवानिवृत्ति से पहले रकम की निकासी से रोकना है। अभी कई कर्मचारी नौकरी बदलते समय पीएफ की रकम को नए नियोक्ता के खाते में स्थानांतरित करने के बजाय निकाल लेते हैं। यूएएन द्वारा प्रस्तावित अकाउंट पोर्टेबिलिटी से इस समस्या को सुलझाने में मदद मिलेगी। कर्मचारी पूरी रकम न निकालें, यह सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों को सिर्फ अपना योगदान निकालने की अनुमति दी जा सकती है, नियोक्ता का नहीं। सदगोपन कहते हैं, 'ईपीएफ धारकों के लिए यूएएन की सुविधा के साथ पीएफ को एक कंपनी से दूसरी कंपनी में स्थानांतरित करने में कोई समस्या नहीं है। इसलिए 10 फीसदी हिस्से को रोक कर रखना कोई बड़ी चुनौती नहीं होगी।'

कम आय वालों का योगदान वैकल्पिक बनाना
बजट में कहा गया है कि एक निश्चित सीमा से कम मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारी यदि चाहें तो ईपीएफ में योगदान नहीं करें। लेकिन नियोक्ताओं को योगदान करना ही होगा। हालांकि अभी यह सीमा तय नहीं की गई है, लेकिन उससे कम वेतन होने पर कर्मचारी के वेतन से पीएफ नहीं काटा जाएगा। यदि कर्मचारी चाहेगा, तभी पीएफ कटेगा। लेकिन ऐसी सूरत में पीएफ की रकम काफी कम रहेगी, जिससे बाद में समस्या हो सकती है। 

न्यूनतम पेंशन होगी 1,000 रुपये प्रतिमाह
अभी पेंशन को पिछले 60 महीनों के औसत वेतन के आधार पर तय किया जाता है। इसे घटा कर 30 महीने किए जाने का प्रस्ताव है। यदि ऐसा होता है तो ज्यादातर उपभोक्ताओं के लिए पेंशन की रकम बढ़ जाएगी। लेकिन मजूमदार कहते हैं कि महंगाई को देखते हुए 1,000 रुपये प्रति महीने की न्यूनतम पेंशन से सेवानिवृत होने वाले लोगों को अधिक मदद नहीं मिलेगी। ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर अमरपाल चड्ढïा कहते हैं, 'ईपीएफओ परिचालन में हाल में कई सुधार किए गए हैं। ऑनलाइन सुविधा, एसएमएस अलर्ट की तरह कर्मचारियों अथवा नियोक्ताओं के लिए कई सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं। शुरू में पीएफ खाते को स्थानांतरित करना या इससे पैसे निकालने में काफी समय लगता था। लेकिन हाल के समय में इस प्रक्रिया में बड़ा सुधार आया है।'

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