सीतेश द्विवेदी/नई दिल्ली। नेपाल में भूकंप की त्रासदी को लेकर भारत की मदद न सिर्फ मानवीय आधार पर है, बल्कि इसके गहरे रणनीतिक निहितार्थ हैं। एशिया में चीन से प्रतिस्पर्धा के बीच नेपाल भारत के लिए बेहद अहम रणनीतिक साझेदार है। तिब्बत पर चीन के आधिपत्य के बाद से ही नेपाल में पांव पसारने के सपने देख रहा चीन आपदा के दौरान भारत की त्वरित मदद से चकित है।
राजनयिक व रणनीतिक मामलों के जानकार भी नेपाल को लेकर भारत के रुख को सही ठहरा रहे है। हालांकि, चीन को भारत की त्वरित सहायता चुभने के आरोपों को भारतीय पक्ष में सिरे से खारिज किया है। विदेश एस. सचिव एस. जयशंकर ने कहा कि इस तरह की कोई भी बात सामने नहीं आई है।
उल्लेखनीय है कि नेपाल के अखबारों में प्रकाशित रिपोर्टो में बताया गया है कि चीन ने नेपाल सरकार से भारत के बचाव और राहत अभियान पर एतराज जताते हुए भारत पर आरोप लगाया है कि भारतीय हेलीकॉप्टर मैत्री अभियान के बहाने चीनी सीमा क्षेत्र में ताकझांक कर रहे हैं। उन्होंने यह अभियान बंद कराने की मांग की है।
इस रिपोर्टो के बाद नेपाल के विदेश मंत्री महेंद्र बहादुर पांडेय के राहत कार्य का क्षेत्र भारत और चीन के बीच बांटने के बयान पर चीन ने अपनी सफाई दी है। मंगलवार को चीन के विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता होंग ली ने नेपाल में राहत कार्य को लेकर भारत-चीन के बीच स्पर्धा से इन्कार किया। ली ने कहा कि नेपाल को संकट से उबारने के लिए चीन भारत के साथ सकारात्मक रूप से काम करना चाहता है।
रक्षा विशेषज्ञ ले. जनरल कादियान कहते हैं, ‘नेपाल में हमारी मौजूदगी बेहद जरूरी है, सरकार को यह पता है। हमें इसके लिए लंबे अभियान के लिए खुद को तैयार रखना होगा।’ नेपाल व हिमालय मामलों के विशेषज्ञ व प्रोफेसर माइकल हट का कहना हैं, ‘तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहे भारत, चीन में क्षेत्र में लीडर के तौर पर उभरने को लेकर होड़ है। दोनों के बीच में स्थिति नेपाल पर आई आपदा में भारत की त्वरित सहायता महत्वपूर्ण संकेत है।
चीन की चुनौती
‘मोतियों की माला’ रणनीति के तहत भारत को घेर चुका चीन अब पाकिस्तान के जरिये भारत को घेर रहा है। पाकिस्तान के हालिया दौरे में 51 समझौते करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 3000 किलोमीटर लंबे अर्थिक गलियारे का औपचारिक अनावरण किया।
भारत के लिए चिंता की बात यह है कि यह रास्ता न सिर्फ पाक अधिपत्य वाले गुलाम कश्मीर से निकलता है, बल्कि इसके जरिये ईंधन को लेकर चीन की समुद्र मार्ग पर निर्भरता समाप्त होने के साथ पश्चिम एशिया में चीन का प्रभाव भी बढ़ जाएगा।
चीन की नजर नेपाल पर भी है। जहां वह ढांचागत सुविधाओं पर जबर्दस्त निवेश कर रहा है। चीन तिब्बत स्थिति ल्हासा को सड़क मार्ग से नेपाल को जोड़ रहा है, वही नेपाल से रेल का रिश्ता भी जोड़ने के प्रयास में जुटा है। जबकि, पिछले साल नेपाल में चीन सबसे कड़े निवेशक के रूप में उभरा है।
ऐसे में भारत के लिए नेपाल का महत्व और बढ़ जाता है। गौरतलब है कि नेपाल की सीमा चीन की दुखती रग तिब्बत से सटी है। तिब्बत में 2008 में चीन विरोधी आंदोलनों में सक्रिय लोगों में करीब 20000 लोग नेपाल में रहते हैं।
लंबे समय से सक्रिय है चीन
दरअसल नेपाल में चीन राजशाही के दिनों से ही प्रभाव जमाने की कोशिश में लगा था। पचास व साठ के दशक में चीन को थोड़ी कामयाबी भी मिली जब तत्कालीन नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने ढाका में हुए सार्क देशों के तेरहवें सम्मेलन में खुले तौर पर चीन का पक्ष लिया था।
हालांकि, 2008 में नेपाल के गणतंत्र घोषित होने और राजशाही के पतन के साथ ही नेपाल में चीन का दखल कमजोर हुआ। ऐसे में चीन ने भारत विरोधी रुख रखने वाले माओवादी दल को सहयोग देने की नीति अपनाई। जबकि, चीन ने भारत सहित अन्य देशों के इन्कार के बाद भी नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र को माओवादियों से निपटने के लिए हथियारों की खेप दी थी।
यहां पर थमी थी राह
नेपाल में चुनावों के बाद सत्ता में आए पुष्प दहल प्रचंड ने बतौर प्रधानमंत्री चीन का दौरा कर नेपाल प्रमुख के पहले भारत यात्र करने की परंपरा को तोड़ दिया था। इसके बाद भारत ने भी रिश्तों को लेकर ठंडा रुख अख्तियार कर लिया था। लेकिन, 17 साल बाद हुई किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्र के साथ ही रिश्तों में फिर वही गर्माहट लौट आई। मोदी की यात्र के दौरान भारत ने नेपाल में ढांचागत विकास की कई परियोजनाओं को लेकर सहमति बनी।