चंडीगढ़। पिछली सरकार में वाड्रा-डीएलएफ लैंड डील को उजागर करके चर्चा में आए व्हिसल ब्लोअर आईएएस अशोक खेमका को अब भाजपा सरकार ने भी लूपलाइन में लगा दिया है। उन्हें ट्रांसपोर्ट कमिश्नर से हटाकर अब पुरातत्व एवं संग्रहालय डिपार्टमेंट में लगाया गया है।
पिछली सरकार ने भी उन्हें काफी समय तक इसी विभाग में रखा था। इनके साथ सीएम की एडीशनल प्रिंसीपल सेक्रेटरी सुमिता मिश्रा को भी सीएमओ से बाहर कर दिया गया है। सरकार ने बुधवार रात्रि 9 आईएएस और 1 एचसीएस अफसर का तबादला कर दिया। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के कुछ समय बाद ही मौजूदा भाजपा सरकार ने उन्हें ट्रांसपोर्ट कमिश्नर लगाकर मुख्य धारा में लाने का संदेश दिया था, लेकिन अब उन्हें वापस साइड लाइन कर दिया गया। इसकी वजह पिछले दिनों कैग रिपोर्ट के बाद अपने ट्वीट को माना जा रहा है।
खेमका ने ट्वीट में वाड्रा-डीएलएफ डील में चार्जशीट का दंश झेलने के साथ-साथ कहा था कि कैग रिपोर्ट में अभी भी बहुत से अनछुए पहलू रह गए हैं। उन्होंने एक ट्वीट में गुरु रवींद्र नाथ टैगोर की पंक्तियों ‘एकला चालो’ के बहाने अपनी निराशा भी व्यक्त की थी। इस पर हेल्थ मिनिस्टर अनिल विज ने उन्हें पूरी तरह साथ देने का भरोसा दिलाया था।
उनके इन ट्वीट्स को सरकार में गंभीरता से लिया गया। इस मुद्दे पर पिछले दिनों सीएम मनोहर लाल ने साफ तौर पर कहा भी था कि खेमका ने वाड्रा-डीएलएफ मामले में केवल अपनी ड्यूटी निभाई थी, कोई अनूठा काम नहीं किया था। हालांकि सीएम ने यह भी कहा था कि वे किसी ईमानदार अफसर को तंग नहीं होने देंगे और करप्शन के मामले में उनकी सरकार जीरो टोलरेंस की नीति पर काम करेगी।
इसी तरह सीएम की एडीशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी सुमिता मिश्रा को भी सीएमओ से बाहर करने का कारण उनकी कार्यशैली से सीएम की नाराजगी मानी जा रही है। मेडिकल एज्यूकेशन एंड रिसर्च के एसीएस आर.पी. चंद्रा के रिटायर होने के कारण उनकी पोस्ट का एडीशनल चार्ज अब एसीएस मेडिकल हैल्थ रामनिवास को दिया गया है।
हालांकि हैल्थ मिनिस्टर अनिल विज और रामनिवास के आपसी संबंध ठीक नहीं हैं। विज उनके बारे में सीएम को शिकायत भी कर चुके हैं, लेकिन अब रामनिवास को कमजोर करने के बजाय और पावरफुल कर दिया गया है।
खेमका की चार्जशीट पर नहीं हुआ फैसला
पिछली सरकार के समय वाड्रा-डीएलएफ लैंड डील में म्यूटेशन रद्द करने के मामले में दी गई चार्जशीट का खेमका की ओर से फरवरी में ही जवाब पेश कर दिया गया था। लेकिन डेढ़ महीने बाद भी सरकार ने उनकी चार्जशीट को लेकर कोई फैसला नहीं किया है। इससे सत्ता के गलियारों में माना जा रहा है कि खेमका की मुश्किलें अभी कम नहीं होंगी।