नई नीति से नाखुशी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब कारोबारियों को ढेर सारे दस्तावेज नहीं जमा करने होंगे। ऑनलाइन शिकायतें की जा सकेंगी और उनका निपटारा भी जल्द होगा। आयात का लाइसेंस पाने में सिर्फ दो दिन लगेंगे, जबकि इसमें पहले महीनों भी लग जाया करते थे। नई नीति का एक और अहम पहलू यह है कि सौदों की प्रक्रियागत लागत पहले के मुकाबले काफी कम होगी। निर्यात के प्रोत्साहन में राज्यों को भी हिस्सेदार बनाया जाएगा। हालांकि विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के मद्देनजर निर्यात सबसिडी घटाई गई है, पर दूसरी ओर, निर्यातकों को प्रोत्साहन देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इस तरह नई विदेश व्यापार नीति को मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों से जोड़ा गया है।फिर भी उद्द्योग जगत खुश नहीं है |

नई नीति घोषित होने के दूसरे ही रोज वस्त्र उद्योग ने नाखुशी जाहिर की, यह कहते हुए कि उसे नजरअंदाज कर दिया गया, जबकि वह रोजगार का एक बड़ा स्रोत है। सरकार को इस शिकायत पर गौर करना चाहिए। निर्यात संवर्धन की राह में सरकार ने प्रक्रियागत अड़चनें दूर करने की तो भरसक कोशिश की है, पर गुणवत्ता सुधारने पर भी ध्यान देना होगा, क्योंकि निर्यात की एक बड़ी बाधा हमेशा गुणवत्ता से जुड़ी रही है। फिर, विदेश व्यापार नीति जैसी भी हो, उसे व्यापारिक वर्चस्व की अंतरराष्ट्रीय होड़ का सामना करना होता है, जिसमें शुल्कीय और गैर-शुल्कीय, दोनों तरह की बाधाएं शामिल रहती हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण चीन से होने वाला व्यापार है।

चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, पर उसके साथ होने वाला भारत का व्यापार गहरे घाटे का शिकार है। चीन को भारत के निर्यात के मुकाबले वहां से होने वाला आयात बहुत ज्यादा है। वहां भारतीय कंपनियों के लिए बाजार-पहुंच की राह में आने वाली अड़चनें दूर करने की मांग को चीन ने अभी तक गंभीरता से नहीं लिया है। चीन से होने वाली वार्ताओं में सीमा विवाद के अलावा यह मसला भी प्रमुखता से उठता रहा है, पर अभी तक चीन के रवैए में कोई तब्दीली नहीं आई है। बाजार-पहुंच का मुद्दा उठने पर वह किसी न किसी किस्म के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर के लिए तैयार हो जाता है, पर सब कुछ पहले की तरह चलता रहता है। दरअसल, निर्यात की प्रतिस्पर्धा बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के कूटनीतिक दांव-पेच से भी हमेशा प्रभावित होती रहती है। इसलिए विदेश व्यापार का असंतुलन दूर करने में आयात घटाने की रणनीति कहीं ज्यादा कारगर साबित हो सकती है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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