नईदिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर हैं। इस यात्रा पर पूरे अंतर्राष्ट्रीय जगत की नजरें हैं। इसकी वजह है लड़ाकू विमान राफेल जिसे लेकर भारत और फ्रांस अब तक आखिरी समझौते तक नहीं पहुंच सके हैं। उम्मीद की जा रही है कि करीब 12 अरब डॉलर का ये सौदा इस बार परवान चढ़ सकता है। मोदी और फ्रांस्वां ओलांद के बीच इसे लेकर महत्वपूर्ण बातचीत होनी है। 2012 का ये सौदा अब तक क्यों लटका हुआ है और क्या है राफेल की खासियतें, जानने की कोशिश करते हैं।
करीब 50 हजार करोड़ रुपये के 126 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में फ्रांसीसी कंपनी से भारत का पेंच ‘कीमत’ को लेकर है। भारत की ओर से जारी अंतर्राष्ट्रीय निविदा में निर्माता कंपनी ने प्रति विमान जो कीमत लगाई थी, सौदे को अंतिम रूप दिए जाने से ठीक पहले उसमें बढ़ोत्तरी करने के चलते मामला फंस गया।
रक्षा मंत्रालय ने यूपीए सरकार के दौरान 31 जनवरी 2012 को राफेल को चुने जाने की घोषणा की थी। भारतीय वायु सेना ने कड़े मूल्यांकन के बाद दुनिया के छह जांबाज लड़ाकू विमानों में से यूरोफाइटर टाइफून और फ्रांस की कंपनी डशॉ के विमान राफेल पर मुहर लगाई थी।
लेकिन जल्द ये सौदा कीमत को लेकर उलझ गया। मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान इस पर मुहर लगने की संभावना है।
डेसॉल्ट राफेल फ्रांस का 2 इंजन वाला मल्टीरोल फाइटर एयर क्राफ्ट है। इस डिजाइन और निर्माण डेसाल्ट एविएशन ने किया है। 1970 में फ्रांसीसी सेना ने अपने पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमानों को बदलने की मांग की।
इसी क्रम में फ्रांस ने 4 यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान की परियोजना पर काम शुरू कर दिया। बाद में साथी देशों से मतभेद उभरने के बाद फ्रांस ने इस पर अकेले ही काम शुरू कर दिया।
