राकेश दुबे@प्रतिदिन। पिछले साल आम आदमी को सुनाया जाता था कि हम मोदी जी को लाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं। कांग्रेस के 10 सालों के शासन में सब कुछ बुरा ही बुरा हुआ, अच्छा कुछ नहीं हुआ। अब कांग्रेस खत्म हो जाएगी। उसके कई बड़े नेता जेल में होंगे। सोनिया गांधी इटली चली जाएंगी।
ऐसी कई भविष्यवाणियां की गईं थीं । बहरहाल, साल भर में न जनता के अच्छे दिन आए, न कांग्रेस खत्म हुई। भाजपा के नेता भी भूलने लगे हैं कि चुनाव की रौ में उन्होंने क्या-क्या कहा। अब वे नयी बातें कर रहे हैं, नए दावे कर रहे हैं, नए कानून बना रहे हैं। प्रधान मंत्री बनने के पूर्व और पश्चात नरेन्द्र मोदी ने कई बार मंशा जतलाई है कि वे देश में अनुपयोगी कानूनों को समाप्त करना चाहते हैं। जैसे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश।
नरेन्द्र मोदी और भाजपा के उनके मुरीदों को छोड़कर देश में व्यापक तौर पर इस अध्यादेश का विरोध ही हुआ। कभी लोकपाल की लड़ाई छेडऩे वाले अन्ना हजारे भी इस मुद्दे पर आंदोलन के लिए बैठे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस मसले पर अपनी राजनीतिक सक्रियता का अहसास जनता को कराया। लंबी छुट्टी के बाद लौटे राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण को केंद्र में रखते हुए ही किसानों की एक बड़ी रैली दिल्ली में की। उनका आरोप था कि नरेन्द्र मोदी सरकार उद्योगपतियों हितैषी हैं और किसान-मजदूर दुर्दशा को प्राप्त हैं|
कुल मिलाकर एक सक्रिय विपक्षी नेता की तरह उन्होंने रैली की और प्रेक्षकों को अपने-अपने तरीके से आकलन करने के लिए छोड़ दिया। कोई उनके जोश में भावी राजनीति का सूत्र खोज रहा है, तो कोई उनके भाषण और मोदी के भाषण देने के अंदाज की तुलना कर रहा है, कोई कांग्रेस की पतवार उनके हाथों में आने की प्रतीक्षा कर रहा है। जो भाजपा तरह-तरह से राहुल गांधी का मजाक बनाती आ रही है, उसके प्रवक्ता आज भी इसी काम पर लगे हैं।
दोनों के इन प्रयासों का कोई नतीजा आता नहीं दिखता| किसानो की आत्महत्याओं का ग्राफ निरंतर बढ़ रहा है, उसकी और, गौर करने की किसी को फुर्सत नहीं है| बहरहाल, किसानों और जमीन की राजनीति तो खूब हुई, अब सचमुच गरीब, भूखे, बेबस अन्नदाताओं का भला हो, ऐसे प्रयास ईमानदारी से हों। ये तो मान बैठे हैं जनता तो कुछ जानती नहीं|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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