मुफ़्ती को याद दिलाया की उनका धर्म क्या है ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कश्मीर में पिछले पांच साल में गिलानी के रैली करने पर पाबंदी थी और मसर्रत आलम जेल में था। इस अवधि में कश्मीर में कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ, आतंकवादी गतिविधियों में भी काफी कमी आई है। सरे विरोधों के बावजूद मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने मसर्रत को इस उम्मीद में रिहा किया था कि अलगाववादियों के साथ संवाद बनाकर उनके रवैये को नरम करने की कोशिश करेगा ,लेकिन हुआ इसका उल्टा और भाजपा की केंद्र सरकार को यह याद दिलाना पड़ा कि राज्य के कर्तव्य क्या है ? और राज धर्म क्या है ?

भाजपा की कश्मीर में घोषित नीति अलगाववादियों के साथ नरमी बरतने के खिलाफ है। भाजपा जब विपक्ष में थी, तब वह लगातार अलगाववाद से सख्ती से निपटने की बात करती थी, हालांकि सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी की कश्मीर नीति संतुलित और व्यावहारिक रही है। उन्होंने पाकिस्तान से बेहतर रिश्ते बनाने की कोशिश की है और कश्मीर में भी संवाद की प्रक्रिया शुरू करने की यथासंभव कोशिश की है। ऐसी रैलियां तो होती रहेंगी, लेकिन इसे गंभीर संकट नहीं माना जा सकता। जिस राज्य में 60-70 प्रतिशत मतदान हुआ हो और जिस सरकार को जनादेश मिला हो, उसे ऐसी रैली से डरने की जरूरत नहीं है। इस रैली में लोगों की मौजूदगी भी इतनी नहीं थी कि उससे किसी भारी जन-समर्थन का अंदेशा हो|

 मसर्रत को भी जेल से बाहर आकर यह पता चला  होगा कि इस बीच कश्मीर घाटी के लोगों का अलगाववाद के प्रति उत्साह बहुत कम हुआ है और पाकिस्तान से अलगाववाद को समर्थन भी कम हुआ है। पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान कश्मीरी अलगाववादियों के जबानी समर्थन के बावजूद जमीनी स्तर पर आतंकवाद बहुत कम हो गया है। १०-१५ साल पहले आतंकवादी गतिविधियों में जहां सैकड़ों लोग मारे जाते थे, पिछले कुछ वक्त से यह संख्या मुश्किल से दहाई में पहुंच पाती है। लेकिन ऐसे में मसर्रत या गिलानी जैसे लोग अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ज्यादा उग्र रवैया अपनाते नजर बंद कर दिए गये हैं।  फिर भी ऐसी गतिविधियों से सतर्क रहना जरूरी है और  अतिरिक्त घबराहट या गुस्से का इजहार नहीं करना चाहिए।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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