हर सरकार बड़े घरानों की दुकान है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के एक नामी उद्योगपति ने कांग्रेस की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार को अपनी दुकान बताया था। पेट्रोलियम मंत्रालय और वित्त मंत्रालय से अति महत्त्वपूर्ण गोपनीय दस्तावेजों की चोरी का ताजा मामला प्रकाश में आने के बाद लगता है कि कांग्रेस ही  नहीं, हर सरकार उद्योगपतियों की दुकान है।

सरकारी कागजात की चोरी दो मंत्रालयों तक सीमित नहीं है। कोयला, संचार, रक्षा, वित्त, वाणिज्य और ऊर्जा जैसे मंत्रालयों के गलियारों में कॉरपोरेट घरानों के दलालों की गहरी पकड़ है। दलालों की मार्फत चुनिंदा औद्योगिक घरानों को मंत्रालयों के हर फैसले की पक्की जानकारी पहले ही लग जाती है ।पहले प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचने से पहले संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों की फाइल नोटिंग तक उनके पास होती थी। रायसीना हिल में अगर पत्ता भी खड़कता था तो उनके पास खबर पहुंच जाती थी। घोषणा से पहले जानकारी जुटा कर कंपनियां करोड़ों रुपए कमाती हैं।

सच यह है की हमारे देश में ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ की जड़ें काफी  गहरी हो चुकी हैं। पुलिस के अनुसार, पेट्रोलियम मंत्रालय से हुई चोरी के मामले में गिरफ्तार आरोपियों से बरामद कागजात में प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव नृपेन मिश्र का पत्र और वित्तमंत्री अरुण जेटली के प्रस्तावित बजट भाषण का अंश भी शामिल है। साथ ही हाइड्रोकार्बन पर कैग रिपोर्ट, तेल मंत्रालय के खोज-प्रकोष्ठ के दस्तावेज और पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण-प्रकोष्ठ की रिपोर्ट भी आरोपियों के पास से मिली हैं। सारे कागजात अति महत्त्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों से जुड़े हैं।

बात इतनी भर नहीं है। आज कुछ औद्योगिक घराने और कॉरपोरेट इतने ताकतवर हो चुके हैं कि अपने लाभ के लिए वे सरकारी नीतियां बदलवाने और गढ़वाने की हैसियत रखते हैं। भारत सरकार में उच्चपदों पर काम कर चुके कुछ नौकरशाह तो यह बात बेझिझक स्वीकार करते हैं। वे मानते हैं कि कुछ मंत्रालयों के नीतिगत निर्णय नौकरशाहों के कमरों में नहीं, कॉरपोरेट घरानों के स्वागती हॉल में तय होते हैं। ऊपर से मिले इशारे के चलते उन्हें ऐसे निर्णय ज्यों के त्यों स्वीकार करने पड़ते हैं। इससे कॉरपोरेट घरानों को अरबों रुपए का मुनाफा होता है। इस मुनाफे में शीर्ष सरकारी पदों पर बैठे शक्तिशाली लोगों का हिस्सा भी होता है जो उनके विदेशी बैंक-खातों में जमा हो जाता है। यह कुचक्र काले धन का महत्त्वपूर्ण स्रोत बन चुका है। 

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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