राकेश दुबे@प्रतिदिन। गजेन्द्र की मृत्यु के साथ अनेक वर्षों से अनुत्तरित सवाल फिर लोग पूछने लगे हैं कि मै किसान मेरा भविष्य क्या ? एक बार पूर्व राष्ट्रपति ऐपीजे अब्दुल कलाम ने बच्चों से पूछा था की किसान कौन बनना चाहता है ? सब चुप थे| यह सवाल सदियों से यथावत है, अन्नदाता कहे जाने वाले किसान और उसके परिवार का भविष्य क्या होगा|
एक समय कहा जाता था कि है अपना देश कहाँ वह बसा हमारे गावों में| आज गाँव कालोनी में तब्दील हो रहे है, बुआई का रकबा कम हो रहा है| जो कृषि कालेज से स्नातक की डिग्री लेकर निकलते है, वे खेत में नहीं सचिवालयों में दिखते हैं| परम्परगत किसानी को कई कारणों ने खत्म किया है| सरकारी योजना का लाभ वोट के प्रतिशत से जुड़ गया है| कई गजेन्द्र जन दे चुके हैं या जान देने पर उतारू है, इसका क्या समाधान है ?
खेती में अनिश्चितता की स्थिति में किसानों के सुरक्षित भविष्य के लिए सक्षम और कारगर योजना बनाने की जरूरत है। खेती-किसानी में किसानों की पूरी पूंजी लगी होती है। इसके बाद भी किसान आशान्वित नहीं होते कि उन्हें आमदनी होगी। खेती की बढ़ती लागत से किसानों को राहत दिलाने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं। कुछ राज्यों में तो उनके लिए अलग से कृषि बजट का प्रावधान किया गया है। उन्हें शून्य ब्याज दर पर खेती के लिए ऋण सुविधा दी जा रही है। उन्हें सिंचाई के लिए सालाना कुछ यूनिट बिजली नि:शुल्क दी जा रही है। पर इससे क्या ?
होना यह चाहिए कि किसानों को नगदी फसल लेने और फसल चक्र परिवर्तन के लिए भी प्रोत्साहित किया जाये। जिन स्थानों पर धान, गेहूं, गन्ना, सोयाबीन की पैदावार होती है। वहां के किसान दूसरी फसलों के बारे में सोचते भी नहीं हैं, उन्हें दूसरी फसलों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं रहती हैं। आज फसलों में भी नई-नई बीमारियां होने लगी है। उसके कारण भी किसान भयभीत रहते हैं। विभिन्न फसलों के पौधों में होने वाली बीमारियों के महामारी रूप में फैलने की परिस्थितियों की बारीकी से जानकारी दी जाए। बताया जाए कि यह बीमारियां किस तरह के मौसम में महामारी का रूप लेती है और इसकी रोकथाम कैसे की जा सकती है। पौधों को लगने वाली विभिन्न बीमारियों की रोकथाम के बारे में भी मार्गदर्शन दिया जाए। आज जरूरत इस बात की है कि सबसे पहले हम विभिन्न फसलों में हर साल होने वाली गंभीर स्थायी बीमारियों की रोकथाम के लिए प्राथमिकता से कार्य करें। फिर मौसम से होने वाली आपदा से सरकार इस तरह निपटे की किसान को यह लगने लगे की वह ठगा नहीं गया है|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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