भोपाल। घर की चार दिवारी और अपनों के बीच सबसे महफूज समझा जाने वाला ठिकाना शायद अब प्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी, प्यारी बिटिया हो या फिर चहेती भांजी के लिए माकूल नहीं रहा। क्योंकि ज्यादती के 88 फीसदी मामलों में पीड़िता की आबरू पर दाग लगाने वाला उसके घर का, रिश्तेदार या फिर करीबी ही निकलता है।
यह चौंकाने वाले आंकड़े हैं प्रदेश में 2013 में हुई ज्यादतियों और सामूहिक ज्यादतियों के मामलों को लेकर मप्र पुलिस की महिला एवं अपराध शाखा की सर्वे रिपोर्ट का हिस्सा हैं। जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 में कुल प्रदेश में 4504 ज्यादती व सामूहिक ज्यादती के प्रकरण दर्ज किए गए। इनमें 55 फीसदी पीड़िता नाबालिग हैं। जबकि 44 फीसदी बालिग युवती व महिलाओं को ज्यादती का शिकार बनाया गया। गंभीर तथ्य यह है कि 57 फीसदी महिलाओं को उनके घरों में ही हवस का शिकार बनाया गया।
प्रदेश के थानों में ऐसे हजारों मामले दर्ज हैं। जिसमें पीड़िताओं ने सगे संबंधियों को दुश्कर्म का दोषी बताया है। इनमें से कई को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। कई अभी भी लंबे समय फरार हैं। चाइल्ड लाइन की मानें तो इस तरह की घटनाएं उन बच्चियों के साथ ज्यादा होती हैं। जहां उन्हें किसी नाते रिश्तेदार के भरोसे छोड़कर अभिभावक नौकरी करने जाते हैं।