शारिक खान/कानपुर देहात। 1981 में फूलन देवी के हाथों नरसंहार के बाद सुर्खियों में आए बेहमई गांव में एक रिपोर्टिंग पुलिस चौकी बनाई गई थी। इस पुलिस चौकी में पिछले 34 साल में एक भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।
इस चौकी में फिलहाल एक सब-इंस्पेक्टर के अलावा 4 कॉन्स्टेबल तैनात हैं। पुलिस का मानना है कि डकैतों का वर्चस्व खत्म होने के बाद यहां क्राइम नहीं बचा तो कुछ कहते हैं कि पुलिस सिर्फ थाने में रहती है।
14 फरवरी 1981 को यमुना क्रॉस कर बेहमई (कानपुर देहात) आई फूलन देवी ने 20 लोगों की हत्या कर दी थी। उस दौर में यहां डकैतों की तूती बोलती थी। डीएसपी संजीव सिन्हा के मुताबिक, उस वारदात के बाद रिपोर्टिंग चौकी पुलिस को रणनीतिक बढ़त दिलाने के लिए बनाई गई थी। तब यहां पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी। आबादी भी काफी कम थी।
कुछ साल बाद राजपुर थाना बन गया। ऐसे में लोग सीधे अपनी शिकायतें लेकर थाने पहुंचने लगे। मोबाइल फोन ने मुश्किलें और खत्म कर दीं। अच्छी बात यह है कि बीहड़ में आबादी के साथ क्राइम भी काफी कम है। उदाहरण के तौर पर अमराहट थाने में हर साल 5-10 एफआईआर ही लिखी जाती हैं।
वहीं इलाके के जानकार दिनेश मिश्रा के मुताबिक, गांवों में झगड़े तो होते हैं, लेकिन चौकी पुलिस सारे मामले सीधे थाने भेज देती है। इस चौकी में 3-4 गांव कवर होते हैं। सामने से जाने पर गांव 4 किमी तो सड़क से जाने पर 14 किमी दूर पड़ता है। पुलिस के पास यहां रिपोर्ट लिखने के लिए स्टेशनरी तक नहीं है।
क्यों बनती है रिपोर्टिंग चौकी
ऐसा इलाका जहां से थाना दूर है, लेकिन पुलिस की मौजूदगी जरूरी है। तकनीकी रूप से थाना वहां नहीं बन सकता है। ऐसे में जिस चौकी में रिपोर्ट दर्ज की जा सके, उसे रिपोर्टिंग चौकी कहते हैं।