इंदौर के 'भागीरथ' का निधन

इंदौर। इंदौर में नर्मदाजल लाने वाले इंदौर के भागीरथ एवं पूर्वमंत्री ललित जैन नहीं रहे। लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। वो पिछले 1 साल से बीमार थे।

उनका राजनीतिक जीवन संघर्ष और गरीबों के हक की लड़ाई के साथ शुरू हुआ। समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया से प्रेरित होकर वे राजनीति में आए। जैन का कांग्रेस में प्रवेश प्रकाशचंद सेठी ने करवाया। उन्होंने नर्मदा का जल इंदौर लाने के लिए हुए आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई।

उन्होंने 1983 में पार्षद का चुनाव जीता। 1985 में विधानसभा क्षेत्र-1 से विधायक बने। 1989 में उन्हें जागरूक विधायक के रूप में सम्मानित किया गया। 1989 में जनता ने जैन को दोबारा विधानसभा भेजा। अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने उन्हें शिक्षा उपमंत्री बनाया।

विधायक और मंत्री रहते हुए उन्होंने शहर को कई योजनाओं का लाभ दिलाया। दिग्विजय सिंह सरकार में उन्हें राज्य सड़क परिवहन निगम का अध्यक्ष बनाया गया। वे वैश्य समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहने के अलावा कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे।

ललित जैन कांग्रेस को नेतृत्व देने वाले ऐसे नेता थे, जिन्‍होंने अपने व्यवहार, जुझारूपन और लोगों की सेवा कर एक मिसाल कायम की। 1965 से वे राजनीति में सक्रिय थे। युवक कांग्रेस और कांग्रेस संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी वे शहरहित के लिए सोचते रहते थे।

हमेशा उनका एक ही सवाल होता था, क्या कर सकते हैं जिससे शहरवासियों को लाभ हो और शहर आगे बढ़े। नगर निगम के पार्षद, विधायक और मंत्री रहते हुए शहर को नई-नई सौगातें दीं। चाहे इंदौर में नर्मदा लाने के लिए चलाया गया आंदोलन हो या बिजली संकट से जूझते इंदौर के लिए मुख्यमंत्री से बात कर गरीबों के लिए महज 300 रुपए में बिजली कनेक्शन दिलवाने की बात, ललित जैन हमेशा आगे रहे।

शिक्षा राज्य मंत्री रहते हुए उन्होंने शहर में नए स्कूल शुरू करने की पहल की। चाहे इंदौर के अधिकारी हों या वल्लभ भवन भोपाल के उनसे कैसे काम लेना है यह वे बखूबी जानते थे। विषय पर मजबूत पकड़ की वजह से अधिकारी उन्हें बरगला नहीं पाते थे। स्वभाव से वे जितने सरल थे अपनी बात कहने में उतने ही स्पष्ट।

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