क्रिकेटी बुखार का इलाज हो

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। क्रिकेटप्रेमियों में निराशा फैली है. सच भी है भारत में क्रिकेट को लेकर जो दीवानगी है, उसे देखते हुए इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। ऐसा पहले भी होता आया है,  भारत में फिर भी पाकिस्तान के मुकाबले तीखी प्रतिक्रिया नहीं होती | इस बार एक बिल्कुल नई चीज भी देखने को मिली है। पहली बार एक क्रिकेटर कीमहिला मित्र  निशाने पर है, यह नजरिया उस सोच की उपज है जो  कामयाबी का सेहरा किसी महिला को हरगिज नहीं देता।

कई साल मैदान में पसीना बहाने के बाद कोई क्रिकेटर ब्रांड के रूप में अपनी पहचान बना पाता था। लेकिन अभी तो थोड़ी सी भी चमक जिस खिलाड़ी में दिखती है, उसे बाजार लपक लेता है और रातोंरात उसे आइकन बना डालता है। इस वजह से उस खिलाड़ी पर इतना ज्यादा प्रेशर हो जाता है कि उसका स्वाभाविक विकास नहीं हो पाता। उसकी इमेज उसके खेल से बड़ी हो जाती है और टीम में उसके रहने या न रहने को दूसरी चीजें प्रभावित करने लगती हैं।

इसी बार एक ऑलराउंडर को टीम में शामिल न किए जाने पर कितनी बहस हुई। बाजार के बहुत ज्यादा दखल से न जाने कितने प्लेयर्स अचानक एक कौंध के साथ आए और गायब हो गए। इसके विपरीत ऑस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड, इंग्लैंड और साउथ अफ्रीका में खिलाड़ियों के परफॉरमेंस को महत्व दिया जाता है, उनकी छवि को नहीं। दरअसल भारत जैसे विकासशील देश के नए बाजार को अभी आइकंस की बहुत ज्यादा जरूरत है।

क्रिकेट ही नहीं फिल्म और दूसरी कलाओं में भी वह नए-नए स्टार पैदा कर रहा है। इससे किसी क्षेत्र में ऊंचाई हासिल करने की बजाय तुरत-फुरत सफल दिखना ही एक मूल्य बन गया है। अब यह उस शख्स पर निर्भर करता है कि वह कुछ रातों का सितारा बनना चाहता है, या गुमनाम रहकर लंबी साधना के बाद अपने फन का मास्टर कहलाना चाहता है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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