शिक्षा विभाग में फिर बाबूराज: राज्य अध्यापक संघ ने किया विरोध

छिन्दवाड़ा। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालयों की एकेडमिक व्यवस्था को दुरूस्त करने के उद्धेश्य से सन 1964 में गठित कोठारी कमीशन द्वारा संकुल व्यवस्था की अनुशंसा की गई थी।  और इसका क्रियान्वयन सन 2003 से शुरू हुआ। पहले स्कूल शिक्षा विभाग ने इस व्यवस्था को अपनाया फिर धीरे-धीरे आदिम जाति विभाग ने भी इसको लागू किया। जिसके सकारात्क परिणाम सामने आये।

पूर्व में जब अकेले प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं का आहरण संवितरण अधिकार विकासखण्ड शिक्षाअधिकारियों के पास था तब वे इन शालाओं का नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे और अब प्राथमिक माध्यमिक के साथ साथ हाईस्कूल और हायरसेकेण्डरी विद्यालयों का नियंत्रण भी इनके पास चले जानें पर व्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा जायेगी।

पहले अधीनस्थ कर्मचारियों के सारे मामले लम्बित पड़े रहते थे। शिक्षकों को होने वाली परेशानी, कार्यालय पर लोड अधिक होने के कारण ही इन व्यवस्थाओं को विकेन्द्रित कर संकुल व्यवस्था लागू की गई थी किन्तु प्रयोगों का अखाड़ा बने शिक्षा विभाग के आला अफसरों ने नया फरमान जारी करके 1 अप्रैल 2015 से संकुल व्यवस्था समाप्त कर दी।

इतना ही नहीं इस व्यस्था के लागू होते ही सभी प्रकार के प्राचार्य पूर्णतः अधिकार हीन हो जायेगें। 1 अप्रैल से संचालनालय कोष एवं लेखा के सेंट्रल सर्वर से उनके डीडीओ कोड निष्क्रिय कर दिये जायेंगें। लम्बित देयको का भुगतान 20 से 25 मार्च तक कर लेने को कह दिया गया है। राज्य अध्यापक संघ ने सरकार के इस निर्णय की कड़ी निंदा की है राज्य अध्यापक संघ छिन्दवाड़ा की अध्यक्ष श्रीमती किरण शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष संजय सिन्हा, प्रवक्ता अनिल नेमा ने इस व्यवस्था पर प्रतिक्रिया देते हुये कहा कि इस व्यवस्था से बाबूराज और भष्टाचार को को बल मिलेगा साथ ही कर्मचारी को पूर्व की भंति बी.ओ आफिस के चक्कर लगाने पडे़गे।

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