स्वाइन फ्लू: इलाज नहीं ड्रामा हो रहा है मप्र में, आरोप नहीं, प्रमाण हैं

भोपाल। यूं तो स्वाइन फ्लू पूरे देश में फैला हुआ है परंतु शेष सभी राज्यों में स्वाइन फ्लू का सफलतम इलाज हो रहा है परंतु मप्र में स्वाइन फ्लू के नाम पर ड्रामे के सिवाए अभी तक कुछ नहीं हुआ है। यह हम नहीं सरकार की रिपोर्ट बोलती है। यहां 28 प्रतिशत स्वाइन फ्लू पीड़ित मरीजों की इलाज के दौरान मौत हो गई, और यह पूरे देश में सबसे ज्यादा है, इतनी ज्यादा कि कोई दूसरा राज्य दूर दूर तक इसके नजदीक नहीं आता।

देश में सबसे कम डेथरेट दिल्ली में दर्ज की गई है। यह 4 प्रतिशत है। तेलंगाना और तामिलनाडू में भी यही डेथरेट दर्ज हुई है। अत: यहां 100 में से मात्र 4 मरीजों की मौत हुई जबकि मध्यप्रदेश में 28/100

मप्र में संक्रमण बढ़ने के पहले राजस्थान, गुजरात, कनार्टक और दिल्ली में स्वाइन फ्लू तेजी से फैल चुका था, लेकिन यहां जागरुकता और इलाज के पुख्ता इंतजाम के चलते ज्यादातर पॉजीटिव मरीजों को बचा लिया गया। मप्र में स्थिति ठीक इसके उलट है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलेंस प्रोग्राम (आईडीएसपी) विंग ने 14 फरवरी को सभी राज्यों में स्वाइन फ्लू संक्रमण की रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के मुताबिक पॉजीटिव मरीजों में सबसे ज्यादा मौत मप्र में हुई है।

राज्य- पॉजीटिव- डेथ- डेथ रेट
मप्र- 248- 68- 28 फीसदी
गुजरात- 1522- 136- 9 फीसदी
दिल्ली- 1374- 06- 0.4 फीसदी
कर्नाटका- 259- 17- 6 फीसदी
राजस्थान- 2167- 153- 7 फीसदी
तेलंगाना- 1043- 46- 4 फीसदी
तमिलनाडु- 195- 8- 4 फीसदी

नोटः आंकड़े 1 जनवरी से 14 फरवरी तक के हैं। डेथ रेट से मतलब पॉजीटिव मरीजों में मरने वालों का प्रतिशत है।

क्या कर रही है मप्र सरकार
शुरूआत में सरकार ने यहां स्वाइन फ्लू का वायरस होने से ही इंकार किया।
जब मौतों का सिलसिला शुरू हुआ तो मीटिंगों का ड्रामा किया गया।
सीएम खुद अस्पताल में पहुंचे मरीजों को देखने।
प्रमुख सचिव मीडिया से मुंह छिपाते हुए भागते रहे।
​सीएम ने अधिकारियों की नियमित मीटिंग शुरू कीं, लेकिन व्यापमं का भूत सामने आते ही वो स्वाइन फ्लू को भूल गए।

स्वास्थ्य विभाग का अजीब अभियान
स्वाइन फ्लू के मामले में मप्र का स्वास्थ्य विभाग अजीब किस्म का अभियान चला रहा है। सभी जिलों में कलेक्टरों को आदेशित किया गया है कि जागरुकता अभियान चलाएं। रैलियां निकालें, शिवरि लगाकर लोगों को स्वाइन फ्लू के बारे में बताएं।

इसमें गलत क्या है
सवाल यह है कि क्या रैलियों से स्वाइन फ्लू का वायरस डरकर भाग जाएगा।
अस्पतालों में इलाज के प्रबंध नहीं हैं।
अच्छे इलाज के नाम पर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रैफर किया जा रहा है।
स्वाइन फ्लू का फर्जी टीका बाजार में बिक रहा है।

तो क्या निष्कर्ष निकालें
संदेह होता है कि मप्र का स्वास्थ्य विभाग स्वाइन फ्लू के खिलाफ नहीं बल्कि मेडिकल माफिया के ऐजेंट के तौर पर काम कर रहा है।
सरकारी लापरवाही से मप्र में स्वाइन फ्लू का वायरस फैला।
अधिकारियों ने इसे रोकने के बजाए खबरों का खंडन किया।
प्रमाणित हो जाने के बाद भी केवल मीटिंग्स हुईं। इलाज उपलब्ध नहीं कराया गया।
जागरुकता अभियान के नाम पर लोगों में दहशत फैलाई जा रही है।
इसका सीधा फायदा मेडिकल माफिया को हो रहा है।
प्राइवेट अस्पतालों में भीड़ लगी है।
मौत का डर दिखाकर लोगों को लूटा जा रहा है।

यदि दिल्ली, तेलंगाना या तामिलनाडू जैसे राज्यों की तरह इलाज कर दिया जाता तो मेडिकल माफिया को करोड़ों कमाने का मौका कैसे मिलता।

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