पढ़िए पाकिस्तान से 2 युद्ध लड़ चुके सैनिक के संघर्ष की कहानी

shailendra gupta
धार। 70 वर्षीय सेवानिवृत्त फौजी लक्ष्मीनारायण पाटीदार अपने अधिकार के लिए पिछले 30 साल से लड़ाई लड़ रहा है। शासन के आदेशानुसार जमीन की पात्रता होने के बावजूद भी जमीन नहीं मिल पा रही है। जिस फौजी ने भारत-पाकिस्तान के दो युद्धों में अपनी विशेष सेवाएं दीं। वह व्यक्ति आज सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा-लगाकर थक चुका है, लेकिन उनका हौसला आज भी बुलंद है। उनका कहना है कि मैं अपने अधिकार के लिए मरते दम तक लड़ता रहूंगा।

लक्ष्मीनारायण पाटीदार ने 27 मई 1963 को सेना में सिपाही के तौर पर अपनी सेवा शुरू की थी। 31 मई 1987 को वे सेना से सेवानिवृत्त हुए। सिपाही के तौर पर सेवानिवृत्त होने के बाद से ही वे अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। स्थिति यह है कि जिस पात्रता के तहत उन्हें चार एकड़ जमीन मिलना चाहिए थी। वह जमीन उन्हें आज तक नहीं मिल पाई। इसके लिए 30 साल में उन्होंने 300 से भी ज्यादा पन्नों की फाइल तैयार कर ली। पटवारी से लेकर कमिश्नर तक सैकड़ों चक्कर लगा लिए लेकिन आज तक उन्हें जमीन नहीं मिल पाई।

गौरतलब है कि शासन का यह प्रावधान है कि सेवानिवृत्त फौजी को जमीन दी जाए। इस जमीन की खातिर वे चक्कर लगा-लगाकर निराश हो चुके हैं। लेकिन श्री पाटीदार 70 साल की उम्र में भी कलेक्टर या अन्य कोई अधिकारी के दफ्तर के बाहर घंटों इंतजार करके उनसे मुलाकात करने में पीछे नहीं हटते हैं। अपनी गुहार सुनाने के लिए हर अधिकारी के पास पहुंचते हैं।

युद्ध में असला पहुंचाने में निभाई थी भूमिका
श्री पाटीदार ऐसे फौजी रहे हैं जिन्होंने भारत-पाक के युद्ध में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1965 के युद्ध में तो हिस्सा लिया ही था किंतु 1971-72 के दौरान हुए युद्ध में विशेष योगदान दिया था। दरअसल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के पास असला यानी गोली और बारूद खत्म हो गए थे। ऐसे में श्रीनगर से कारगिल तक असला पहुंचाने में दिन-रात एक करके अपनी विशेष सेवाएं दी थी।

इसी की बदौलत गोरखा रेजीमेंट को असला मिल पाया था और रेजीमेंट आगामी युद्ध लड़ पाई थी। उनके इस योगदान के लिए उन्हें पदक भी मिला था। ऐसे विशेष योगदान देने वाले सेवानिवृत्त सैनिक को शासकीय व्यवस्था में परेशान होना पड़ रहा है।

मैं अधिकार के लिए लड़ूंगा
श्री पाटीदार ने कहा कि मैं अपने अधिकार के लिए लड़ता रहूंगा। जमीन की पात्रता होते हुए भी मुझे जमीन नहीं दी जा रही है। मैंने तमाम आदेश और सैनिक कल्याण बोर्ड के पत्रों का हवाला दे रखा है। यहां तक कि जमीन किस जगह पर उपलब्ध है और जमीन चिन्हित करके भी सारी प्रक्रिया प्रशासन को बता दी है किंतु इसमें अब तक कोई सफलता नहीं मिली है। मेरी उम्र 70 वर्ष हो चुकी है। इसलिए जब तक मुझमें ताकत है तब तक मैं इस अधिकार के लिए लड़ता रहूंगा। एक फौजी के जज्बे के साथ मैं इस अधिकार को प्राप्त करने में लगा रहूंगा।

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